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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ इन्द्र की सहायता कुणिक ने तीन दिनों का तप किया। शकेन्द्र और चमरेन्द्र की अराधना की। वे प्रकट हुए। उनके योग से प्रथम दिन महाशिलाकंटक संग्राम की योजना हुई। कूणिक शकेन्द्र द्वारा निर्मित अभेद्य बचपतिरूप कवच से सुरक्षित होकर युद्ध में आया ताकि चेटक का अमोघ बाण भी उसे मार न सके । घमासान युद्ध हुआ । कूणिक की सेना द्वारा डाला गया कंकड़, तृण व पत्र भी चेटक की सेना पर महाशिला जैसे प्रहार करता था। एक दिन के संग्राम में ६४ लाख मनुष्य मरे । दूसरे दिन रथ-मूसल-संग्राम की विकुर्वणा हुई। कूणिक चमरेन्द्र देवनिमित स्वयंचालित रथ पर चला। अपने चारों ओर से मूसल की मार करता हुआ सारे दिन वह शत्रु की सेना में घूमता रहा । एक दिन में ६६ लाख मनुष्यों का संहार हुआ। चेटक और नो मल्लकी, लिच्छवी,-ऐसे अट्टारह काशी-कौशल के गणराजाओं की पराजय हुई तथा कूणिक की विजय हुई।' वैशाली प्राकार-भंग __ पराजित होकर राजा चेटक अपनी नगरी में चला गया। प्राकार के द्वार बन्द कर लिये । कूणिक प्राकार को तोड़ने में असफल रहा। बहुत समय तक वैशाली को घेरे वह वहीं पड़ा रहा। एक दिन आकाशवाणी हुई- श्रमण कूलवालक जब मागधिका वेश्या में अनुरक्त होगा, तब राजा अशोकचन्द्र (कूणिक) वैशाली नगरी का अधिग्रहण करेगा।"3 कूणिक ने कूलवालक का पता लगाया। मागधिका को बुलाया। मागधिका ने कपट श्राविका बन कूलवालक को अपने आप में अनुरक्त किया । कूलवालक नैमित्तिक का वेष बना जैसे-तैसे वैशाली नगरी में पहुँचा। उसने जाना कि मुनि सुव्रत स्वामी के स्तूप के प्रभाव से यह नगरी बच रही है। लोगों ने शत्रु-संकट का उपचार पूछा। उसने कहा-“यह स्तूप टूटेगा, तभी शत्रु यहाँ से हटेगा।" लोगों ने स्तूप को तोड़ना प्रारम्भ किया। एक बार तो कूणिक की सेना पीछे हटी; क्योकि वह ऐसा समझा कर आया था । ज्यों ही सारा स्तूप टूटा, कूणिक ने कूलवालक के कहे अनुसार एकाएक आक्रमण कर वैशाली-प्राकार भंग किया। हल्ल और विहल्ल हार और हाथी को लेकर शत्रु से बचने के लिए भगे। प्राकार की खाई में प्रच्छन्न आग थी। हाथी सेचनक इसे अपने विभङ्ग-ज्ञान से जान चुका था। वह आगे नहीं बढ़ा । बलात् बढ़ाया गया तो उसने हल्ल और विहल्ल को नीचे उतार दिया और स्वयं अग्नि में प्रवेश कर गया। मर कर अपने शुभ अध्यवसायों के कारण प्रथम देवलोक में उत्पन्न १. भगवती, शतक ७, उद्दे० ९, सू० ३०१। २. 'कूलवालक' तपस्वी नदी के कूल के समीप आतापन करता था। उसके तप: प्रभाव से नदी का प्रवाह थोड़ा मुड़ गया। उससे उसका नाम 'कूलवालक' हुआ। - (उत्तराध्ययन सूत्र, लक्ष्मीवल्लभ कृत वृत्ति प्रथम खण्ड, पत्र ८, (गुजराती अनु वाद सहित), अहमदाबाद, १६३५।। ३. समणे जह कूलवालए, महगहिरं रमिस्सए । राया अ असोगचंदए, बेसालि नगरी गहिस्सए॥ -वही, पत्र १०। ४. उत्तरज्झयणाणि, लक्ष्मीवल्लभ कृत वृत्ति, पत्र ११ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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