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________________ ३०१ इतिहास और परम्परा ] वस्तुएँ हमारे राज्य मगध की हैं।" चेटक ने पुनः नकारात्मक उत्तर देकर दूत को विसर्जित किया । दूत ने आकर कूणिक को सारा संवाद कहा। कूणिक उत्तेजित हुआ । आवेश में आया । उसके ओठ फड़कने लगे । आँखें लाल हो गईं। ललाट में त्रिवली बन गई। दूत से कहा"तीसरी बार और जाओ। मैं तुम्हें लिखित पत्र देता हूँ। इसमें लिखा है - "हार, हाथी वापस करो या युद्ध के लिए सज्ज हो जाओ।' चेटक की राजसभा में जाकर उसके सिंहासन पर लात मारो। भाले की अणी पर रख कर मेरा यह पत्र उसके हाथों में दो ।" दूत ने वैसा ही किया । चेटक भी पत्र पढ़कर और दूत का व्यवहार देखकर उसी प्रकार उत्तेजित हुआ । आवेश में आया । दूत से कहा - " मैं युद्ध के लिए सज्ज हूं । कूणिक शीघ्र आये, मैं प्रतीक्षा करता हूँ।” चेटक के आरक्षकों ने दूत को गलहत्था देकर सभा से बाहर किया । कूणिक ने दूत से यह सब कुछ सुना । कालकुमार आदि अपने दस भाइयों को बुलाया । और कहा - " अपने-अपने राज्य में जाकर समस्त सेना से सज्ज होकर यहाँ आओ । चेटक राजा से मैं युद्ध करूँगा ।" सब भाई अपने-अपने राज्यों में गये । अपने-अपने तीन सहस्र हाथी, तीन सहस्र घोड़े, तीन सहस्र रथ और तीन करोड़ पदातिकों को साथ लेकर आये । कूणिक ने भी अपने तीन सहस्र हाथी, तीन सहस्र घोड़ें, तीन सहस्र रथ और तीन करोड़ पदातियों सज्ज किया। इस प्रकार तैंतीस सहस्र हस्ती, तेंतीस सहस्र अश्व, तेंतीस सहस्र रथ और तेंतीस करोड़ पदातिकों की बृहत् सेना को लेकर कृणिक वैशाली पर चढ़ आया । राजा चेटक ने भी अपने मित्र तो मल्लकी, नो लिच्छवी; अट्ठारह काशी-कोशल के राजाओं को एकत्रित किया। उनसे परामर्श माँगा – “श्रेणिक राजा की चेल्लणा रानी का पुत्र, मेरा तृक (दोहिता) कूणिक हार और हाथी के लिए युद्ध करने आया है । हम सब को युद्ध करना है या उसके सामने समर्पित होना है ?" सब राजाओं ने कहा - "युद्ध करना है, समर्पित नहीं होना है ।" यह निर्णय कर सब राजा अपने-अपने देश में गये और अपने-अपने तीन सहस्र हाथी, तीन सहस्र अश्व, तीन सहस्र रथ और तीन करोड़ पदातिकों को लेकर आये । इतनी ही सेना से चेटक स्वयं तैयार हुआ । ५७ सहस्र हाथी. ५७ सहस्र अश्व, ५७ सहस्र रथ और ५७ करोड़ पदातिकों की सेना लिए चेटक भी संग्राम-भूमि में आ डटा । राजा चेटक भगवान् महावीर का उपासक था । उपासक के १२ व्रत उसने स्वीकार किये थे । उसका अपना एक विशेष अभिग्रह था - "मैं एक दिन में एक से अधिक बाण नहीं चलाऊंगा ।" उसका बाण अमोघ था अर्थात् निष्फल नहीं जाता था। पहले दिन अजातशत्रु की ओर से कालकुमार सेनापति होकर सामने आया । उसने गरुड़ व्यूह की रचना की । राजा चेटक ने शकट व्यूह की रचना । भयंकर युद्ध हुआ । राजा चेटक ने अपने अमोघ बाण का प्रयोग किया। कालकुमार धराशायी हुआ । इसी प्रकार एक-एक कर अन्य नो भाई एक-एक दिन सेनापति होकर आये और चेटक राजा के अमोघ बाण से मारे गये । महावीर उस समय चम्पानगरी में वर्तमान थे । कालकुमार आदि राजकुमारों की माताएँ काली आदि दस रानियों ने युद्ध-विषयक प्रश्न महावीर से पूछे । महावीर ने कालकुमार आदि की मृत्यु का सारा वृत्तान्त उन्हें बताया । उन रानियों ने महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की । १ १. निरयावलिया सूत्र ( सटीक ), पत्र ६- १ | Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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