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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:१
परम्पराओं का युद्ध-विषयक वर्णन बहुत ही लोमहर्षक और तात्कालिक राजनैतिक स्थितियों का परिचायक है। जैन विवरण भगवती सूत्र, निरयावलि या सूत्र तथा आवश्यक चूणि में मुख्यतः उपलब्ध होता है । बौद्ध-विवरण वीघ निकाय के महापरिनिधान-सुत्त तथा उसकी अट्ठकथा में मिलता है।
महाशिलाकंटक संग्राम
चम्पानगरी में आकर कूणिक ने कालकुमार आदि अपने दस भाइयों को बुलाया। राज्य, सेना, घन आदि को ग्यारह भागों में बांटा और आनन्दपूर्वक वहां राज्य करने लगा। कूणिक राजा के दो सगे भाई (चेलणा के पुत्र) हल्ल और विहल्ल थे।' राजा श्रेणिक ने अपनी जीवितावस्था में ही अपनी दो विशेष वस्तुएँ उन्हें दे दी थीं-सेचनक हस्ति और अठारहसरा देवप्रदत्त हार ।२
प्रतिदिन विहल्लकमार सेचनक हस्ती पर सवार हो, अपने अन्तःपुर के साथ जलक्रीड़ा के लिए गंगा-तट पर जाता। उसके आनन्द और भोग को देखकर नगरी में चर्चा उठी"राजश्री का फल तो विहल्लकुमार भोग रहा है, कूणिक नहीं।" यह चर्चा कुणिक की रानी पद्मावती तक पहुँची। उसे लगा-'यदि सेचनक हाथी मेरे पास नहीं, देवप्रदत्त हार मेरे पास नहीं तो इस राज्य-वैभव से मुझे क्या?" कुणिक से उसने यह बात कही। अनेक बार के आग्रह से कूणिक हार और हाथी मांगने के लिए विवश हुआ। हल्ल और विहल्लकुमार को बुलाया और कहा-"हार और हाथी मुझे सौंप दो।" उन्होंने उत्तर दिया-"हमें पिता ने पृथक् रूप से दिये हैं। हम इन्हें कैसे सौंप दें?" कूणिक इस उत्तर से रुष्ट हुआ। हल्ल और विहल्लकुमार अवसर देखकर हार, हाथी और अपना अन्तःपुर लेकर वैशाली में अपने नाना चेटक के पास चले गये। कूणिक को यह पता चला। उसने चेटक राजा के पास अपना दूत भेजा और हार, हाथी तथा हल्ल-विहल्ल को पुनः चम्पा लोटा देने के लिए कहलाया।'
-हार और हाथी हल्ल-विहल्ल के हैं। वे मेरी शरण आये हैं। मैं उन्हें वापस नहीं लौटाता। यदि श्रेणिक राजा का पुत्र, चेल्लणा का आत्मज, मेरा नप्तक (दोहिता) कुणिक हल्ल-विहल्ल को आधा राज्य दे, तो मैं हार, हाथी उसे दिलवाऊँ ।" उसने पुन: दूत भेजा और कहलाया "हल्ल और विहल्ल बिना मेरी अनुज्ञा के हार और हाथी ले गये हैं। ये दोनों
१. हल्ल और विहल्ल-इन नामों के विषय में सर्वत्र विविधता मिलती है। निरया
वलिया मूल में इस सारे घटना-प्रसंग को केवल विहल्ल के साथ ही जोड़ा है। निरयावलिया टीका, भगवती टीका, भरतेश्वर-बाहुबली वृत्ति आदि ग्रन्थों में इसी घटना-प्रसंग के लिए हल्ल और विहल्ल-दो नाम प्रयुक्त हुए हैं।
अपुत्तरोववाइय में विहल्ल और वेहायस को चेलणा का पुत्र बताया है तथा हल्ल को धारिणी का। निरयावलिया वृत्ति और भगवती वृत्ति के अनुसार हल्ल और
विहल्ल दोनों ही चेलणा के पुत्र हैं । वस्तुस्थिति अन्वेषण का विषय है । २. कहा जाता है-सेचनक हाथी और देवप्रदत्त हार का मूल्य श्रेणिक के पूरे राज्य के
बराबर था। (आवश्यक चूर्णि, उत्तरार्ध, पत्र १६७) ।
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