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इतिहास और परम्परा अनुयायी राजा
२६५ वहाँ कोई एक कुर्कुट उसकी कनिष्ठ अंगुली काट लेता है । अंगुली से रक्तश्राव होने लगता है। राजा श्रेणिक इस घटना का पता चलते ही पुत्र-मोह से व्याकुल होकर वहाँ आता है, उसे उठा कर रानी के पास ले जाता है और रक्त व मवाद चूस-चूस कर बालक की अंगुली को ठीक करता है।
बौद्ध परम्परा के अनुसार जन्मते ही राजा के कर्मकर बालक को वहाँ से हटा लेते हैं; इस भय से कि रानी कहीं उसे मरवा न डाले। कालान्तर से वे उसे रानी को सौंपते हैं; तब पुत्र-प्रेम से रानी भी उसमें अनुरक्त हो जाती है। एक बार अजातशत्रु की अंगुली में एक फोड़ा हो गया । व्याकुलता से रोते बालक को कर्मकर राजसमा में राजा के पास ले गये। राजा ने उस अंगुली को मुंह में डाला। फोड़ा फूट गया । पुत्र-प्रेम से राजा ने वह रक्त और मवाद उगला नहीं, प्रयुक्त निगल गया।
पिता को कारावास
पितृ-द्रोह के सम्बन्ध से जैन-परम्परा कहती है, कूणिक के मन में महत्वाकाँक्षा उदित हुई और अन्य भाइयों को अपने साथ मिला कर स्वयं राज-सिंहासन पर बैठा तथा निगड़. बन्धन कर श्रेणिक को कारावास में डलवा दिया।
बौद्ध परम्परा के अनुसार अजातशत्रु देवदत्त की प्रेरणा से महत्त्वाकाँक्षी बना और उसने अपने पिता को घूम-गृह (लोह-कर्म करने का घर) में डलवा दिया।
पिता का वष
जैन परम्परा के अनुसार कूणिक किसी एक पर्व-दिन पर अपनी माता चेलणा के पास पाद-नन्दन करने के लिये गया। माता ने उसका पाद-वन्दन स्वीकार नहीं किया। कारण पूछने पर माता ने श्रेणिक के पुत्र-प्रेम की घटना सुनाई और उसे उस दुष्कृत्य के लिये धिक्कारा । कूणिक के मन में भी पितृ-प्रेम जगा। अपनी भूल पर अनुताप हुआ। तत्काल उसने निगड़ काटने के लिए परशु हाथ में उठाया और पितृ-मोचन के लिये चल पड़ा। श्रेणिक ने सोचा-"यह मुझे मारने के लिए ही आ रहा है । अच्छा हो, अपने आप मैं प्राणान्त कर लूं।" उसने तत्काल तालपुट विष खा अपना प्राण-वियोजन किया।
बौद्ध परम्परा में बताया गया है कि धूम-गृह में कोशल देवी के सिवाय अन्य किसी का जाने का आदेश नहीं था। अजातशत्रु राजा को भूखा रख कर मारना चाहता था ; क्योंकि देवदैत्त ने कहा था-"पिता शस्त्र-वध्य नहीं होता; अतः उसे भूखा रख कर ही मारें।" कोशल देवी मिलने के बहाने उत्संग में भोजन छिपा कर ले जाती और राजा को देती। अजातशत्रु को पता चला तो उसने कर्मकरों को कहा-मेरी माता को उत्संग बान्ध कर मत जाने दो। तब वह जूड़े में छिपा कर ऐसा करने लगी। उसका भी निषेध हुआ, तब वह स्वर्ण-पादुका में छिपा कर ऐसा करने लगी। उसका भी निषेध होने पर रानी गन्धोदक से स्नान कर अपने शरीर पर चार मधु का अवलोप कर राजा के पास जाती। राजा उसके शरीर को चाट-चाट कर कुछ दिन जीवित रहा । अन्त में अजातशत्रु ने माता को धूम-गृह में जाने से रोक दिया। अब राजा स्रोतापत्ति के सुख पर जीने लगा।
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