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इतिहास और परम्परा
अनुयायी राजा
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अट्रकथाओं के और भी कुछ उल्लख हैं। जैसे-'बुद्ध की मृत्यु का संवाद अजातशत्रु को कौन सुनाये, कैसे सुनाये ?' अमात्यवर्ग में यह प्रश्न उठा । सबने सोचा, राजा के हृदय पर आघात न लगे, इस प्रकार से यह संवाद सुनाया जाये। मंत्रियों ने दुःस्वप्न-फल के निवारण का बहाना कर 'चतु-मधुर' स्नान की व्यवस्था की। उस आनन्दप्रद वातावरण में उन्होंने बद्ध के निर्वाण का संवाद अजातशत्रु को सुनाया। फिर भी संवाद सुनते ही अजातशत्रु मूच्छित हो गया। दो बार पुनः 'चतुर-मधुर' स्नान कराया गया। तब उसकी मूर्छा टूटी और उसने गहरा दुःख व्यक्त किया।' एक परम्परा यह भी कहती है --मन्त्री वस्सकार ने जन्म से निर्वाण तक बुद्ध की चित्रावली दिखाकर अजातशत्रु को बुद्ध की मृत्यु से ज्ञापित किया। इस घटना से बुद्ध के प्रति रही अजात शत्रु की भक्ति का निदर्शन मिलता है। बहुत उत्तरकालिक होने से यह कोई प्रमाणभूत आधार नहीं बनता।
देवदत्त के शिष्य मिण्डिका-पुत्र उपक ने बुद्ध से चर्चा की। अजातशत्रु के पास आया और बद्ध की गर्दा करने लगा। पर, अजातशत्रु क्रोधित हुआ और उसे चले जाने के लि कहा। अट्ठकथाकार ने इतना और जोड़ दिया है कि अजातशत्रु ने अपने कर्मकरों से उसे गलहत्था देकर निकलवाया। इस प्रसंग से भी अजातशत्रु का अनुयायित्व सिद्ध नहीं होता। अशिष्टता से चर्चा करने वालों को तथा मुखर गर्दा करने वालों को हर बुद्धिमान् व्यक्ति टोकता ही है। यदि उपक अजातशत्रु को बुद्ध का दृढ़ अनुयायी मानता, तो अपनी बीती सुनाने वहाँ जाता ही क्यों ? अपने गुरु देवदत्त का हितैषी समझ कर ही उसने ऐसा किया होगा।
उत्तरवर्ती साहित्य में कुछ प्रसंग ऐसे भी मिलते हैं, जो बौद्ध धर्म के प्रति अजातशत्रु का विद्वेष व्यक्त करते हैं । अवदानशतक के अनुसार राजा बिम्बिसार ने बुद्ध की वर्तमानता में ही बुद्ध के नख और केशों पर एक स्तूप अपने राजमहल में बनवाया था। राजमहल की स्त्रियाँ धूप, दीप और फूलों से उसकी पूजा करती थीं। अजातशत्रु ने सिंहासनारूढ़ होते ही पूजा बन्द करने का आदेश दिया। श्रीमती नामक एक स्त्री ने फिर भी पूजा की, तो उसे मृत्यु-दण्ड दिया । थेरगाथा-अट्ठकथा के अनुसार अजातशत्रु ने अपने अनुज सीलवत् भिक्षु को मरवाने का भी प्रयत्न किया। उक्त उदाहरण अजातशत्रु को बौद्ध धर्म का अनुयायी सिद्धन कर, प्रत्युत् विरोधी सिद्ध करते हैं; पर इनका भी कोई आधारभूत महत्त्व नहीं है।
बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ राईस डेविडस भी स्पष्टतः लिखते हैं "बातचीत के अन्त में अजातशत्रु ने बुद्ध को स्पष्टतया अपना मार्ग-दर्शक स्वीकार किया और पितृ-हत्या का पश्चात्ताप व्यक्त किया। किन्तु, यह असंदिग्धतया व्यक्त किया गया है कि उसका धर्म-परिवर्तन नहीं किया गया। इस विषय में एक भी प्रमाण नहीं है कि उस हृदयस्पर्शी प्रसंग के पश्चात् भी वह
१. धम्मपद-अट्ठकथा, खण्ड २,६०५-६ । २. Ency lopaedia of Buddhism, p. 320. ३. अंगुत्तर निकाय, ४-८-१८८। ४. Encyclopaedia of Buddhism, p. 319. ५. अवदानशतक, ५४। ६. थेरगाथा-अट्ठकथा, गाथा, ६०६-१६।
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