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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : १ अपने-अपने आधार हैं । बौद्ध परम्परा के अनुसार सामञ्ञाफल सुत्त का सम्पर्क बुद्ध और अजातशत्रु का प्रथम- प्रथम मिलन था । उसी में वह बुद्ध, धर्म और संघ का शरणागत उपासक हुआ ।" बुद्ध के प्रति अजातशत्रु की भक्ति का अन्य उदाहरण उनकी अस्थियों पर एक महान् स्तूप बनवाना है । बुद्ध के मश्मावशेष जब बांटे जाने लगे, उस समय अजातशत्रु ने भी कुशीनारा के मल्लों से कहलाया - "बुद्ध भी क्षत्रिय थे, मैं भी क्षत्रिय हूँ । अवशेषों का एक भाग मुझे अवश्य मिलना चाहिए।" द्रोण विप्र के परामर्श पर उसे एक अस्थि-भाग मिला और उस पर उसने स्तूप बनाया । " २८८ सामञ्ञफल सुत्त में अजातशत्रु कार्तिक पूर्णिमा की रात को अपने राज वैद्य जीवक कौमारभृत्य से बुद्ध का परिचय पाता है और पाँच सौ हाथियों पर पाँच सौ रानियों को लिए उसी रात में बुद्ध का साक्षात् करता है । महावीर से उसका प्रथम साक्षात् कब होता है, यह कहना कठिन है । उनके जितने साक्षात् उनसे मिलते हैं, वे चिर परिचय और अनन्य भक्ति के ही सूचक मिलते । प्रथम उपाङ्ग उववाई आगम मुख्यतः महावीर और कूणिक के सम्बन्धों पर ही प्रकाश डालता है। चम्पा नगरी और कूणिक की राज्य स्थिति का भी वहाँ सुन्दर चित्रण है । कूणिक को महावीर के प्रति भक्ति के विषय में वहाँ बताया गया है— उसके एक प्रवृत्ति-वादक पुरुष था । वह महान् आजीविका पाता था । उसका कार्य था, महावीर की प्रतिदिन की प्रवृत्ति से उसे अवगत करते रहना। उसके नीचे अनेकों कर्मकर रहते थे । वे भी आजीविका पाते थे। उनके माध्यम से महावीर के प्रतिदिन के समाचार उस प्रवृत्ति-वादुक पुरुष को मिलते और वह उन्हें कूणिक को बताता । 3 महावीर के चम्पा आगमन और कूणिक के भक्ति - निदर्शन का विवरण उबवाई सुत में बहुत ही विशद और प्रेरक है । सामञ्ञफल सुत्त की तरह वह भी यदि गवेषकों की समीक्षा का विषय बना होता, तो उतना ही महत्त्व उसका बनता । स्थिति यह है कि जितनी शोध- खोल अब तक त्रिपिटकों पर हुई है, उतनी आगमों पर नहीं । यदि ऐसा हुआ होता तो अनेकों महत्त्वपूर्ण विषयों पर निर्णायक प्रकाश पड़ता । अजातशत्रु कूणिक के विषय में मी जितनी अवगति आगम देते हैं, उतनी त्रिपिटक नहीं । महावीर के आगमन का सन्देश महावीर और कूणिक का यह सम्पर्क चम्पा नगरी में होता है - महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते १४ सहस्र भिक्षु ३६ सहस्र भिक्षुणियों के परिवार से चम्पा नगरी के उपनगर में आये । प्रवृत्ति-वादक पुरुष यह संवाद पा, आनन्दित हुआ, प्रफुल्लित हुआ । स्नान कर मंगल वस्त्र पहने, अल्प भार युक्त तथा बहुत मूल्य युक्त आभूषण पहने। घर से निकला । चम्पा नगरी १. एसाहं, भन्ते, भगवन्तं सरणं गच्छामि धम्मं च भिक्खु संघ च । उपासकं मं भगवा धातु अज्जतग्गे पाणुपेतं सरणं गतं । २. बुद्धचर्या, पृ० ५०६ । ३. तस्स णं कोणिअस्स रण्णो एक्के पुरिसे विउलकय-वित्तिए भगवओ पवित्तिवाउए, भगवओ तद्देवसिअं पविति णिवेएइ । तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिण्णभति- भत्त-वेअणा भगवओ पवित्तिवाउआ भगवओ तद्देवसिअं पवित्ति निवेदेति । — उववाई सुत्त सु०, ८ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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