SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास और परम्परा ] अनुयायी राजा २८७ है, बिम्बिसार के बहुत-सी रानियां थीं। मुख्यतः जिस-जिस परम्परा से जिनका सम्बन्ध रहा है, उस परस्परा में उनका ही समुल्लेख मुख्यत: हुआ है । हो सकता है, कुछ एक रानियाँ नामभेद से दोनों परम्पराओं में उल्लिखित हुई हों । राजपुत्र श्रेणिक का उत्तराधिकारी राजपुत्र कूणिक ( अजातशत्रु ) था । बौद्ध परम्परा में कुछ एक पुत्रों का उल्लेख है । अभयकुमार को नर्तकी रानी पद्मावती का पुत्र बताया गया है । " अम्बपाली गणिका से उत्पन्न बिम्बिसार का एक पुत्र विमल कोडञ्ञ था, जो आगे चल कर बौद्ध भिक्षु हुआ । बिम्बिसार के एक अन्य पुत्र सीलवा ( शीलवत् ) ने भी भिक्षु बनकर अर्हत् पद प्राप्त किया था। बिम्बिसार के एक पुत्र का नाम जयसेन था । * जैन परस्परा में कूणिक के अतिरिक्त बहुत सारे राजकुमारों का व्यवस्थित वर्णन मिलता है । अणुत्तरोववाइय में १० राजकुमारों का वर्णन आया है। उनके नाम हैं - १. जाली, २. मयाली, ३. उवयाली, ४ पुरिमसेण, ५. वारिसेण, ६. दिहृदन्त, ७. लट्ठदन्त, . ८. . वेहल्ल, ६. वेहायस और १०. अभयकुमार । इनमें से प्रथम ७ धारिणी के पुत्र थे, वे हल्ल और वेहायस चेलणा के तथा अभयकुमार नन्दा की। उसी आगम में प्रसंगान्तर से १३ राजकुमारों के निम्नोक्त नाम बताये गये हैं१. दीहसेण, २. महासेण, ३. लट्ठदन्त, ४. गूढ़दन्त, ५. शुद्धदन्त, ६ . हल्ल, ७. दुम, ८. दुमसेण, ६. महादुमसेण, १०. सीह, ११. सीहसेण १० महासी हसेण और १३. पुण्णसेण । निरियावलिका में काली, सुकाली आदि रानियों से निम्नोक्त दस राजकुमार माने गये हैं - १. कालकुमार, २. सुकालकुमार, ३. महाकालकुमार, ४. कण्हकुमार, ५. सुकण्हकुमार, ६. महाकण्हकुमार, ७ वीरकण्हकुमार, ८. रमिकण्हकुमार, ६. सेणकण्हकुमार और १०. महासेणकण्हकुमार । मेघकुमार, नन्दीसेन, ये दो राजपुत्र जैन परम्परा में बहुत प्रसिद्ध रहे हैं । जैन आगमों में उक्त राजपुत्रों का नामग्राह उल्लेख मात्र ही नही ; यथास्थान इन सबका व्यवस्थित जीवन-वृत्त भी है। इनमें से कालकुमार आदि दस महाशिलाकण्टक संग्राम में मरे हैं और शेष सभी ने दीक्षा ग्रहण की है । अजातशत्रु कूणिक श्रेणिक की तरह कूणिक ( अजातशत्रु) का भी दोनो परम्पराओं में समान स्थान है । दोनों ही परम्पराएँ उसे अपना-अपना अनुयायी मानती। और इसके लिए दोनों के पास १. थेरी गाथा ३१-३२ । २. थेर गाथा - अट्ठकथा, ६४ । ३. थेर गाथा, ६०८-६१६ । ४. मज्झिमनिकाय - अट्ठकथा, २,६३२ । ५. नवरं सत्त घारिणीसुआ, वेहल्ल वेहासा चेल्लणाओ, अभयस्स णाणत्तं रायगिहे नयरे सेणिये राया नन्दा देवी । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only - - अनुत्तरोववाइय, वर्गं १ www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy