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________________ इतिहास और परम्परा] अनुयायी राजा २८५ श्रेणिक नाम जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में समान रूप से अभिमत है। दोनों परम्पराओं में क्रमशः 'श्रेणिक भिभिसार' और 'श्रेणिक बिम्बिसार' का संयुक्त प्रयोग ही मुख्यतः मिलता है। श्रेणिक शब्द के व्यौत्पत्तिक अर्थ में भी बहुत कुछ समानता है। जैन-परम्परा मानती है._णियों की स्थापना करने से श्रेणिक नाम पड़ा।" बौद्ध-परम्परा मानती है-"पिता के द्वारा अठारह श्रेणियों का स्वामी बनाये जाने के कारण वह श्रेणिक बिम्बिसार कहलाया।"२ दोनों ही परम्पराओं में श्रेणियों की संख्या अठारह है। श्रेणियों के नाम भी बहुत कुछ समान रूप से मिलते हैं। जैनागम जम्बूदीवपण्णत्ति में नव नारु और नव कारु५ श्रेणियों के ये अठारह भेद बहत ही विस्तत रूप में बताये गये हैं। बौद्ध साहित्य में श्रेणियों के नाम एक रूप तथा इतने व्यवस्थित नहीं मिलते। महावस्तु के नाम जम्बूदीवपण्णत्ति के नामों से बहत कुछ मिलने वाले हैं, पर, वे संख्या में तीस कर दिये गये हैं। डाँ० सी० मजूमदार ने विविध ग्रन्थों से एकत्रित कर श्रेणियों के सत्ताइस नाम संजोये हैं। मालूम होता है, उन्होंने जम्बूदीवपण्णत्ति का अवलोकन नहीं किया । नहीं तो उन्हें यह नहीं लिख देना होता कि "ये अठारह श्रेणियाँ कौन थीं, यह बताना सम्भव नहीं है।"" कुछ लोग यह भी मानते हैं कि महती सेना होने से या सेनिय गोत्र होने से, श्रेणिक नाम पड़ा। पिता का नाम श्रेणिक के पिता का नाम श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार प्रसेनजित् ठहरता है ।। दिगम्बर-परम्परा के उत्तरपुराण में उसके पिता का नाम कुणिक बताया गया है, जो स्पष्टतः अयथार्थ है । दिगम्बर आचार्य हरिषेण कृत बृहत् कयाकोष (कथांक, ५५) में श्रेणिक १. श्रेणी : कायति श्रेणिको मगधेश्वर :। --अभिधान चिन्तामणिः, स्वोपज्ञवृत्तिः, मर्त्यकाण्ड, श्लो० ३७६ । २. सपित्राष्टादशसु श्रेणिष्ववतारितः । अतोऽस्यो श्रेण्यो बिम्बिसार इति ख्यातः । -विनय पिटक, गिलगिट मांस्कृप्ट । ३. जम्बूदीवपण्णत्ति, वक्ष० ३; जातक, मूगपक्खजातक, भा०६, जातक संख्या ५३८ । ४. कुंभार, पट्टइल्ला, सुवण्णकारा, सूवकारा य । गंधव्वा, कासवग्गा, मालाकारा, कक्छकरा ॥१॥ तंम्बोलिया य ए ए नवप्पयारा य नारुआ भणिआ। अह णं गवप्पयारे कारुअवण्णे पवक्खामि ॥२॥ चम्मयरु, जंतपीलग, गंछिअ, छिपाय, कंसारे य । सीवग. गुआर, भिल्लग, धीवर, वण्णइ अठ्ठदस ॥३॥ ५. भा० ३, पृ० ११३ तथा ४४२-४४३ । ६. Corporate Life in Ancient India, vol II, P. 18, ७. Dictionary of Pali Proper Names, vol, II, PP. 289. 1284. ६. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रम्, पर्व १०, सर्ग ६, श्लो० १। १०. सुनुः कुणिकभूपस्य श्रीमत्यां त्वमभूरसौ। अथान्यदा पिता तेऽसौ मत्पुत्रेषु भवेत्पतिः ॥ -उत्तरपुराण,चतुःसप्ततितमं पर्व, श्लो० ४१८ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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