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________________ इतिहास और परम्परा] अनुयायी राजा २७५ हैं । मूलभूत उल्लेख विनय पिटक का है; जिसमें बताया गया है -- बुद्ध उरुवेल काश्यप आदि सहस्र जटिलों को बौद्ध धर्म में दीक्षित कर राजगृह आये । राजा बिम्बिसार ने यह समाचार सुना । उसने बारह लाख मगध-निवासी ब्राह्मणों और गृहस्थों के साथ बुद्ध के दर्शन किए। बुद्ध उस समय लट्ठिवन में प्रतिष्ठित थे। उन्होंने बिम्बिसार आदि बारह लाख मगध-निवासियों को धर्मोपदेश दिया। धर्मकथा सुन कर उनमें से बिम्बिसार आदि ग्यारह लाख मगध वासियों को उसी आसन पर "जो कुछ पैदा होने वाला है, वह नाशमान है"-यह विरज (=निर्मल) धर्म-चक्षु उत्पन्न हुआ और एक लाख उपासक बने ।' बद्ध के धर्म में विशारद होकर बिम्बिसार ने कहा--"भन्ते! पहले कुमार-अवस्था में मेरी पाँच अभिलाषाएं थीं। वे अब पूरी हो गई। मैं चाहता था-मेरा राज्याभिषेक हो, मेरे राज्य में अर्हत् अर्थात् बुद्ध आयें, उनकी मैं सेवा करू, वे मुझे धर्मोपदेश करें और उन भगवान् को मैं जानूं । आज तक यथाक्रम मेरी पांचों अभिलाषाएं पूरी हो गई हैं। भिक्षु-संघ सहित कल के लिए मेरा निमन्त्रण स्वीकार करें।" अगले दिन मगधराज बिम्बिसार ने बुद्ध-सहित भिक्षु-संघ को अपने हाथ से उत्तम भोजन कराया और अपना वेणुवन उद्यान भिक्षु-संघ के लिए प्रदान किया। इसी प्रकरण की पुष्टि का एक समुल्लेख दीघ निकाय के कटदन्त सत्त' में मिलता है। कूटदन्त विप्र अपने परामर्शक और सहयोगी विप्रों से कहता है-''मैं क्यों न श्रमण गौतम के दर्शनार्थ जाऊँ ? मगधराज श्रेणिक बिम्बिसार पुत्र सहित, भार्या सहित, अमात्य सहित प्राणार्पण से श्रमण गौतम का शरणागत हुआ है।"3 ठीक यही उल्लेख सोणदण्ड सुत्त में प्रसंगोपात्त सोणदण्ड ब्राह्मण करता है। उपोसथ का आरम्भ शरण-ग्रहण के पश्चात् बिम्बिसार का बुद्ध और उनके भिक्षु-संघ के साथ कैसा सम्पर्क रहा, इस बात के द्योतक भी अनेक घटना-प्रसंग उपलब्ध होते हैं। कुछ एक बार और भी बुद्ध व बिम्बिमार के साक्षात् होने के उल्लेख विनय पिटक, महावग्ग में मिलते हैं। एक भेंट में बिम्बिसार प्रस्ताव रखते हैं-'अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा के दिन अन्य धमावलम्बी एकत्र होते हैं, उपदेश करते हैं, क्यों न भन्ते ! हमारा भिक्षु-संघ भी ऐसा करे ।" बुद्ध ने तथारूप अनुमति दी। सैनिकों को दीक्षा-निषेध एक अन्य भेंट में उसने सैनिकों को दीक्षित न करने का अनुरोध बुद्ध से किया। स्थिति यह थी कि बिम्बिसार सैनिकों को सीमा-प्रदेश पर शत्र ओं से लड़ने के लिए भेजता । सैनिक मरने के भय से भिक्षु-संघ में प्रविष्ट हो जाते । बुद्ध ने वह प्रस्ताव स्वीकार किया। ___ एक बार श्रेणिक बिम्बिसार ने अपने अधीनस्थ असीति सहस्र गाँवों के प्रतिनिधियों को अपने पास एकत्रित किया। उन्हें राज, समाज और अर्थ-सम्बन्धी व्यवस्थाएं बताई। अन्त में उसने कहा-"मैंने जो भी बताया है, वह लौकिक है । लोकोत्तर ज्ञान के लिए तुम १. विनय पिटक, महावग्गो, महाखंधक, पृ० ३५-३६ । २. वही, पृ० ३७-३८। ३. दीघ निकाय, १-५, पृ १११-११२ । ४. वही, १-४, पृ० १०८। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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