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इतिहास और परम्परा
विरोधी शिष्य
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पाँच सौ भिक्ष ओं को साथ लेकर सारिपुत्त और मौग्गल्लान ने वेणुवन की ओर प्रस्थान कर दिया । कोकालिक ने देवदत्त को उठाया और उससे कहा---'मैंने पहले ही कहा था, इन दोनों का विश्वास मत करो। वे अपने पाँच सौ साथियों को फोड़कर चलते बने हैं।" देवदत्त के मुख से वहीं गर्म खून निकल पड़ा।
सारिपुत्त और मौग्गलान पाँच सौ भिक्ष ओं के परिवार से बुद्ध के पास पहुँचे। उन्होंने निवेदन किया--"भन्ते ! संध में फूट डालने वाले अनुयायी भिक्ष ओं को पुन: उपसम्पदा प्रदान करें।"
बुद्ध ने कहा-“सारिपुत्त ! ऐसे नहीं। पहले इन्हें अपने थुल्लच्चय (बड़े अपराध) की देशना कराओ। जब तक ऐसा नहीं होगा, ये उपसम्पदा के अनधिकारी रहेंगे।
बुद्ध ने पूछा-"सारिपुत्त ! देवदत्त ने तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया ?"
सारिपुत्त ने उत्तर दिया-"भन्ते ! बहुत रात बीत जाने तक भगवान् भिक्ष ओं को धर्म-कथा द्वारा समुत्तेजित और संप्रहर्षित करते हैं । बहुत बार भगवान् मुझे आज्ञा देते हैंचित्त व शरीर के आलस्य से रहित भिक्ष-संघ को तू धर्म-कथा कह । मेरी पीठ अगिया रही है; अतः मैं लम्बा होकर लेटूंगा। भन्ते ! उसी प्रकार देवदत्त ने मेरे साथ किया।"
बुद्ध ने भिक्ष ओं को सम्बोधित करते हुए कहा-"प्राचीन युग में एक महासरोवर था। वहाँ बहुत सारे हाथी रहते थे। वे प्रतिदिन सरोवर में आते, मृणाल को निकालते और अच्छी तरह धोकर खाते । इससे उनका सौन्दर्य और बल बढ़ता था। वे सब प्रकार के दुःखों से मुक्त रहते थे । कुछ तरुण सियार उन हाथियों का अनुकरण करते थे । वे भी मृणाल खाते थे, पर, उन्हें अच्छी तरह धोते नहीं थे । इससे उनका बल व सौन्दर्य घटता था। यह सारा उपक्रम उनके दुःख का निमित्त बनता था। इसी प्रकार भिक्ष ओ! देवदत्त मेरी नकल कर कृपण होकर मरेगा। वह अपायिक, नैरयिक, कल्पस्थ और अचिकित्स्य है।"
गर्म खून निकलने से देवदत्त बहुत ही पीड़ित हुआ । नौ महीने तक उन वेदना भोगता रहा । अन्तिम दिनों में उसे सन्मति आई । खिन्नता के साथ उसने पूछा- आजकल शास्ता कहाँ है ?" उत्तर मिला-"जेतवन में।" देवदत्त ने अपने साथियों से कहा- "मुझे खाट पर डालकर ले चलो और शास्ता के दर्शन कराओ।" साथियो ने वैसा ही किया। जब वे उसे लिए जा रहे थे, जेतवन पुष्करिणी के समीप फटी पृथ्वी में धंसकर वह अविचि नरक में पहुँच गया । एक लाख कल्प तक वहाँ रह कर अपने अग्रिम जन्म में वह अट्टिस्सर नामक प्रत्येक बुद्ध होगा और निर्वाण प्राप्त करेगा। सद्धर्म पुण्डरीक के अनुसार वह देवराज नामक बुद्ध होगा।
जमालि
महावीर के विरोधी शिष्यों में गोशालक के अतिरिक्त एक उल्लेखनीय विरोधी शिष्य और था। वह था, जमालि । वह महावीर का भानेज भी था और जामाता भी। उसकी दीक्षा का वर्णन पूर्व प्रकरणों में आ ही चुका है। वह पांच सौ क्षत्रिय कुमारों के साथ दीक्षित हुआ था। जमालि की पत्नी (महावीर की पुत्री) प्रियदर्शना भी एक सहस्र स्त्रियों के साथ महावीर १. विनय पिटक, चुल्लवग्ग, खंध-भेदक खंधक के आधार से। २. धम्मपद-अट्टकथा, खण्ड १, पृ० १२५ ३. अध्याय ११ ।
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