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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ "भन्ते! मैंने राजगृह में पहले देवदत्त की प्रशंसा करते हुए कहा था-'गोधिपुत्र (देवदत्त) महद्धिक (दिव्य शक्तिधर) है।' भन्ते ! अब मैं उसका प्रकाशन करूं?" "सारिपुत्त ! तू ने देवदत्त की पहले यथार्थ ही तो प्रशंसा की थी न ?" "हाँ, भन्ते !" "सारिपुत्त ! इसी प्रकार यथार्थ ही देवदत्त का राजगृह में प्रकाशन कर।" सारिपुत्त ने बुद्ध का आदेश शिरोधार्य किया । बुद्ध ने भिक्षु-संघ से कहा-'संघ सारिपुत्त को राजगृह में देवदत्त के प्रकाशन-कार्य के लिए चुने ।" उसी समय बुद्ध ने चुनावविधि पर प्रकाश डालते हुए कहा--- "संघ पहले सारिपुत्त को पूछे । उसके अनन्तर चतुर व समर्थ भिक्षु-संघ को सूचित करे और क्रमशः ज्ञप्ति, अनुश्रावण और धारणा करे।" संघ द्वारा चुने जाने के बाद आयुष्मान् सारिपुत्त बहुत से भिक्षुओं के साथ राजगृह आये । वहाँ देवदत्त का प्रकाशन किया। श्रद्धालु, पण्डितों व बुद्धिमानों ने सोचा-"भगवान् राजगृह में देवदत्त का जो प्रकाशन करवा रहे हैं, यह साधारण घटना नहीं है।" अजातशत्रु को पित-हत्या की प्रेरणा देवदत्त कुमार अजातशत्र के पास आया। कुमार से कहा-"मनुष्य पहले दीर्घायु होते थे। अब अल्पायु होते हैं। हो सकता है, तुम कुमार रहते ही मर जाओ। कुमार ! तुम पिता को मार कर राजा हो जाओ और मैं बुद्ध को मार कर बुद्ध होऊँगा।'' अजातशत्र जंघा में छुरा बाँध कर भीत, उद्विग्न, शंकित व त्रस्त की तरह मध्याह्न में सहसा अन्तःपुर में पहुँचा । अन्तःपुर के उपचारक महामात्यों ने तत्काल उसे ज्यों-का-त्यों पकड़ लिया। कुमार से महामात्यों ने पूछा-'सच-सच बताओ, तुम क्या करना चाहते थे?" "पिता को मारना चाहता था ।' "किसने प्रोत्साहित किया ?" "आर्य देवदत्त ने ।" कुछ महामात्यों ने सम्मति दी--"कुमार को भी मारना चाहिए और देवदत्त व भिक्षुओं को भी।" कुछ महामात्यों ने कहा-"न कुमार को मारना चाहिए, न देवदत्त और भिक्षुओं को भी, अपितु राजा को सूचित कर देना चाहिए। वे जैसा चाहेंगे, करेंगे। महामात्य अजातशत्र को लेकर मगधराज श्रेणिक बिम्बिसार के पास गये। उन्हें सारी घटना सुनाई । श्रेणिक ने महामात्यों के परामर्श के बारे में पूछा । उनके विचार भी बताये गये । श्रेणिक ने निर्णय दिया--- "भणे ! इसमें बुद्ध, धर्म और संघ का क्या दोष है ? भगवान् ने तो राजगृह में पहले ही इसका प्रकाशन करवा दिया है। जिन महामात्यों ने कुमार, देवदत्त व भिक्ष ओं को मारने का परामर्श दिया है, उन्हें पद से पृथक कर दिया जाये और जिन्होंने कुमार, देवदत्त व भिक्ष ओं को मारने का परामर्श न देकर मुझे सूचित करने का प्रस्ताव किया है, उसकी पदोन्नति कर दी जाये।" . मगधराज श्रेणिक विम्बिसार ने अजातशत्र से पूछा- "कुमार ! तू मुझे किस प्रयोजन से मारना चाहता था ?" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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