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इतिहास और परम्परा ]
प्रमुख उपासक उपासिकाएं
कान कारवाँ छूटेगा और न वे विकाल में पहुँचेंगे। वे मार्ग-श्रम से क्लान्त भी नहीं होंगे। इस उद्देश्य से संघ के गमिक भिक्षुओं को जीवनपर्यन्त भोजन देना चाहती हूँ ।
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४. रोगी भिक्षुओं को अनुकूल भोजन न मिलने पर उनके रोग में वृद्धि होती है या मृत्यु हो जाती है । मेरा भोजन करने से न उनका रोग बढ़ेगा और न उनकी मृत्यु
होगी ।
५. रोगी - परिचारक भिक्षु अपने भोजन की गवेषणा में रोगी के पास विलम्ब से पहुँचेगा या उस दिन वह भोजन न कर सकेगा । रोगी परिचारक भोजन कर यदि रोगी के लिए समय से भोजन ले आयेगा, तो वह भक्तच्छेद भी नहीं कहलायेगा |
६. रोगी भिक्षुओं को अनुकूल भैषज्य न मिलने पर उनका रोग बढ़ता है या उनकी मृत्यु हो जाती है । मेरे भैषज्य को ग्रहण करने पर न उनका रोग बढ़ेगा और न उनकी मृत्यु होगी ।
७. अन्धकविंद में भगवान् ने दश गुणों को देख यवागू की अनुमति दी है । उन गुणों को देखकर ही संघ को मैं प्रतिदिन यवागू देना चाहती हूँ ।
८. एक बार भिक्षुणियां अचिरवती नदी में वेश्याओं के साथ एक ही घाट पर नंगी स्नान कर रहीं थीं । वेश्याओं ने भिक्षुणियों की ताना कसा--'" "तुम सब युवतियों को ब्रह्मचर्य - वास का क्या प्रयोजन? तुम्हें तो इस अवस्था में भोगों का ही परिभोग करना चाहिए और वार्धक्य में ब्रह्मचर्य - वास । ऐसा करने से तुम्हारे दोनों ही फलितार्थ शुभ होंगे।" भिक्षुणियाँ उन्हें कोई उत्तर न दे सकी। स्त्रियों की नग्नता गर्हास्पद व घृणास्पद होती है; अत: मैं जीवन पर्यन्त भिक्षुणी संघ को उदक-साटिका देना चाहती हूँ ।"
वर से उपलब्धि
तथागत ने पूछा - "विशाखे ! तुझे इन वरों में किस विशेष गुण की उपलब्धि दृष्टिगत हो रही है ?"
विशाखा ने कहा - "नाना दिशाओं में वर्षावास सम्पन्न कर भगवान् के दर्शनार्थ भिक्षु - जन जब श्रावस्ती आयेंगे, भगवान् से पूछेंगे, "अमुक भिक्षु मर गया है । उसकी गति क्या है ? क्या परलोक है ?" उस समय भगवान् स्रोतापत्ति-फल, सकृदागामि-फल या अर्हत्व का व्याकरण करेंगे | मैं उन भिक्षुओं से पूछूंगी, वे मृत भिक्षु श्रावस्ती आये थे या नहीं ? यदि वे मुझे कहेंगे कि वह भिक्षु श्रावस्ती में आया था, तो मैं निश्चय कर लूंगी, उस आर्य ने मेरे यहाँ से वर्षिक साटिका या नवागन्तुक भोजन या गमिक भोजन या रोगी भोजन या रोगीपरिचारक भोजन या नैरन्तरिक यवागू अवश्य ही ग्रहण किया होगा । उसका स्मरण कर मेरे चित्त में प्रमोद होगा, प्रमोद से प्रीति होगी, प्रीति से काया शान्त होगी, काया शान्त होने से मैं सुख का अनुभव करूँगी और सुख का अनुभव होने पर मेरा चित्त समाधि को प्राप्त होगा । यह सारी प्रक्रिया ही मेरी इन्द्रिय-भावना, बल-भावना और बोध्यंग-भावना होगी । इस वरयाचना में मुझे इसी विशेष गुण की उपलब्धि दृष्टिगत हो रही है ।
तथागत ने विशाखा के विचारों का अनुमोदन किया, उसे साधुवाद दिया और उसे आठों ही वरों की स्वीकृति दी । बुद्ध आसन से उठकर चले एये। बिहार में पहुँच कर उन्होंने
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