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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन से निवृत्त होकर निश्चित ही विहार में चले गये होंगे; इसीलिए इसे आराम सूना मिला है। उसने दासी को पुन: भेजा । २५८ भोजन का समय हो जाने पर भगवान् ने भिक्षुओं को पात्र चीवर तैयार करने का निर्देश दिया । भिक्षु शीघ्र ही तैयार हुए। कोई बलशाली पुरुष फैली हुई बाँह को जैसे समेटे और समेटी हुई बाँह को जैसे फैलाये और उसमें उसे किसी प्रयत्न विशेष की आवश्यकता नहीं होती, उसी प्रकार बुद्ध बिना प्रयास ही जेतवन में अन्तर्धान हुए व विशाखा के घर प्रकट हुए और संघ के साथ बिछे आसन पर बैठे । विशाखा ने साश्चर्यं कहा - " तथागत की महद्धिकता स्तुत्य है । सारे शहर में जँघा तक व कही-कही कमर तक पानी भरा है और एक भिक्षु का पैर या चीवर भी नहीं भीगा ।" उसने अतीव हर्षित होकर बुद्ध प्रमुख भिक्षु संघ को उत्तम खाद्य-भोज्य परोसा और उन्हें संतर्पित किया । आठ वर बुद्ध जब भोजन से निवृत्त हो गये, तो वह एक ओर बैठ गई और उसने बुद्ध से कहा“भन्ते ! मैं कुछ वर माँगती हूँ ।" " तथागत वर से दूर हो चुके हैं ।" " भन्ते ! वे कल्प्य और निर्दोष हैं ।” बुद्ध से अनुमति पाकर विशाखा ने वर माँगते हुए कहा १. मैं यावज्जीवन संघ को वर्षा की वार्षिक साटिका देना चाहती हूँ 1 २. मैं यावज्जीवन नवागन्तुकों को भोजन देना चाहती हूँ । ३. मैं यावज्जीवन गमिकों (प्रस्थान करने वाले भिक्षुओं) को भोजन देना चाहती हूँ । ४. मैं यावज्जीवन रोगी को भोजन देना चाहती हूँ । ५. मैं यावज्जीवन रोगी - परिचारक को भोजन देना चाहती हूँ । ६. मैं यावज्जीवन रोगी को औषधि-दान करना चाहती हूँ । ७. मैं यावज्जीवन संघ को प्रतिदिन प्रातः काल यवागू देना चाहती हूँ । ८. मैं यावज्जीवन भिक्षुणी संघ को उदक-साटिका' देना चाहती हूँ । तथागत ने विशाखा से वर माँगने का कारण पूछा तो उसने एक-एक पहलू पर विशद प्रकाश डाला । उसने भिक्षुओं के नग्न ही स्नान करने की घटना सुनाई और कहा १. भन्ते ! नग्नता घृणित, मलिन व बुरी है; अत: मैं यावज्जीवन संघ को वर्षिक साटिका देना चाहती हूँ । २. नवागन्तुक भिक्षु, श्रावस्ती के मार्ग नहीं जानते । थके-माँदे होते हैं । वे मेरे यहाँ भोजन कर गली-कूचों से परिचित हो जायेंगे और थकावट दूर कर भिक्षाचार करेंगे ; अत: मैं यावजीवन संघ के नवागन्तुक भिक्षु को भोजन देना चाहती हूँ । ३. प्रस्थान करने वाले भिक्षुओं का, भोजन की एषणा करते हुए, समय अधिक लग जाता है; अत: वे अपने कारवाँ से विलग हो जाते हैं या अपने लक्षित स्थान पर वे विकाल (अपराह्न) में पहुँचेंगे और थके हुए जायेंगे । मेरे यहाँ भोजन करने वाले गमिक भिक्षुओं १. रजस्वला स्त्रियों के काम में लाया जाने वाला वस्त्र | For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_05 www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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