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________________ इतिहास और परम्परा] प्रमुख उपासक-उपासिकाएं २५७ सखी का गलीचा विशाखा की एक सखी एक दिन उसके पास आई। वह अपने साथ एक सहस्र मूल्य का गलीचा भी लाई थी। उसने विशाखा से कहा- "मैं यह गलीचा तेरे प्रासाद में कहीं बिछाना चाहती हूँ। तू मुझे स्थान बता।" विशाखा ने कहा- "यदि मैं तुझे कह कि अवकाश नहीं है तो तू समझेगी, मैं तुझे प्रासाद में स्थान देना नहीं चाहती; अतः तू ही दोनों मंजिलों को गौर से देख ले और जहाँ तुझे उचित स्थान मिले, वहाँ अपना गलीचा बिछा दे।" सखी प्रासाद में चारों ओर घूमी, पर, उसे कोई फर्श खाली नहीं मिला। वह जहाँ गई, उसे अपने से अधिक बहुमूल्य गलीचे बिछे मिले । वह दुःखित होकर रो पड़ी। आनन्द स्थविर ने उसे देखा । स्थविर ने उससे पूछा तो उसने अपना हृदय खोल दिया। आनन्द ने उसे सान्त्वना दी और स्थान बताते हुए कहा --"सीढ़ी और पैर धोने के स्थान के बीच इसे पादपोंछन बनाकर बिछा दे। भिक्षु पैर धोकर इससे पोंछेगे और फिर कमरे में प्रवेश करेंगे। इससे तुझे महाफल होगा।" विशाखा का उस स्थान की ओर ध्यान नहीं गया था। प्रासाद का उत्सव विशाखा ने चार ही महीने तक बुद्ध-प्रभृति भिक्षु-संघ को विहार में ही भिक्षा-दान किया । उसने अन्तिम दिन संघ को चीवर-शाटक दिये । सब से नये भिक्षु को दिये गये चीवर का मूल्य सहस्र था। सभी भिक्षुओं को पात्र भरकर भैषज्य (घी, गुड़ आदि) दिया गया। दान देने में नौ करोड़ व्यय हुआ। इस प्रकार भूमि खरीदने में, विहार निर्माण में और विहारउत्सव में विशाखा ने सत्ताईस करोड़ की राशि व्यय को । एक महिला और मिथ्या-दृष्टि के घर में वास करते हुए बुद्ध-शासन में उसने जो दान किया, वैसा दूसरे का नहीं था।' भिक्षओं द्वारा नग्न ही स्नान भगवान् बुद्ध वाराणसी से क्रमशः चारिका करते हुए श्रावस्ती पहुँचे। अनाथपिण्डिक के जेतवन में ठहरे। विशाखा मृगार-माता भगवान् को अभिवादन करने गई। धर्म-कथा द्वारा भगवान् ने उसे समुत्तेजित व सम्प्रहर्षित किया। विशाखा ने भगवान् को भिक्षु-संघ के साथ अगले दिन के भोजन का निमंत्रण दिया। भगवान् ने मौन रहकर उस निमंत्रण को स्वीकार किया। रात बीतने पर चातुर्दीपिक महामेघ बरसाने लगा । बुद्ध ने भिक्षुओं को कहा"जेतवन में जैसे यह मेघ बरस रहा है, वैसे ही चारों द्वीपों में बरस रहा है । यह अन्तिम चातुर्दीपिक महामेघ है; अत: इसमें स्नान करो।" भिक्षुओं ने उस निर्देश को स्वीकार किया और वस्त्र उतार कर नग्न ही स्नान करने लगे। विशाखा ने दासी को भोजन-काल की सूचना के लिए विहार में भेजा । दासी ने नग्न भिक्षुओं को स्नान करते देखा, तो उल्टे पैरों लौट आई और उसने विशाखा को परिस्थिति से अवगत किया--"वहाँ तो शाक्य भिक्षु नहीं हैं, आजीवक भिक्षु हैं; अत: वर्षा में नग्न स्नान कर रहे हैं।" विशाखा चतुर थी। उसने स्थिति को तत्काल भाँप लिया। उसने दासी को काल की सूचना का दूसरी बार निर्देश दिया। दासी पुन: आराम में आई। भिक्षु उस समय स्नान कर, शरीर को शान्त कर, वस्त्र पहन अपनेअपने विहार में चले गए थे। दासी को आराम में कोई भिक्षु नहीं मिला । वह पुन: लौट आई। विशाखा को सारी परिस्थिति से परिचित किया। विशाखा ने सोचा, आर्य लोग स्नान १. धम्मपद-अट्ठकथा, ४-४ के आधार पर। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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