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________________ सम्पादकीय आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन ग्रन्थ का यह "इतिहास और परम्परा" खण्ड भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से बहुत ही मौलिक है। प्रत्येक प्रकरण कोई नवीन स्थापना करता है या किसी अनवगत तथ्य को प्रकट करता है । विचार-समीक्षा लगभग सभी प्रकरणों का मुख्य अंग | विवादात्मक पहलुओं को अपनी शालीन समालोचना के साथ मुनि श्री नगराजजी ने किसी आधारभूत तथ्य तक पहुँचाया है । समग्र खण्ड १८ प्रकरणों में विभक्त है । प्रथम प्रकरण में बुद्ध की साधना पर निर्ग्रन्थ-साधना का कितना प्रभाव रहा है, इस विषय में कुछ एक मौलिक आधार प्रस्तुत किये गये हैं । दूसरे प्रकरण में पूरण काश्यप, प्रक्रुध कात्यायन, अजित केशकम्बली और सञ्जय वैलट्ठपुत्त; इन चार धर्मनायकों के जीवन-परिचय तथा उनकी मान्यताओं का शोधपूर्ण ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें अनेक अचर्चित पहलु सामने आये हैं । तीसरा प्रकरण गोशालक और आजीवक सम्प्रदाय पर एक संक्षिप्त शोध-निबन्ध ही बन गया है । गोशालक का जीवन एवं उनका अभिमत, जैन व बौद्ध धर्म-संघों से उनका सम्बन्ध तथा आजीवक मत की मान्यताओं का आलोचनात्मक विवेचन प्रस्तुत प्रकरण में किया गया है। डॉ० बाशम, डॉ० बरुआ आदि की कुछ धारणाओं का निराकरण भी इसमें किया गया है । उल्लेखनीय बात यह है कि मुनि श्री ने अपनी समीक्षा में गोशालक व आजीवक मत को हेयता को ही नहीं उभारा है, अपितु महावीर के द्वारा की गई आजीवक मत की प्रशंसा का भी यथोचित दिग्दर्शन कराया है । जैन और बौद्ध परम्परा में गोशालक मुख्यतया या एक निद्य पात्र के रूप में ही प्रस्तुत किये गए हैं; पर मुनि श्री ने उन्हें एक समसामयिक धर्मनायक के रूप में देखा है और अपनी भाषा में उन्होंने सर्वत्र उनके लिए बहुवचन का ही प्रयोग किया है । चौथा प्रकरण काल-निर्णय का है। महावीर और बुद्ध का जीवन-वृत्त इतिहास के क्षेत्र में जितना सुस्पष्ट हुआ है, उतना ही उनका तिथि क्रम धुंधला व विवादास्पद रहा है । बुद्धनिर्वाण की बीसों तिथियाँ विद्वज्जगत् में अब तक मानी जाती रही हैं। उनका कालमान ई० पू० ७ वीं शताब्दी से ई० पू० ४ थी शताब्दी तक का है। प्रस्तुत प्रकरण में आगम, त्रिपिटक व सर्वमान्य ऐतिहासिक तथ्यों की संगति से उनके तिथि क्रम का एवं उनकी समसामयिकता का निर्णय किया गया है। इसके साथ-साथ शिशुनाग वंश से चन्द्रगुप्त मौर्य तक की ऐतिहासिक काल-गणना को भी सुसंगत रूप दिया गया है । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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