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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :१
इस प्रकार उन्हें वहाँ रहते हुए काफी समय बीत गया। राजा ने एक दिन धनंजय को शासन (पत्र) भेज कर सावधान किया--"तुम हमारा चिरकाल तक भरण-पोषण नहीं कर सकते ; अतः कन्या की विदाई का समय निश्चित करो।"
धनंजय ने राजा को प्रतिशासन भेजा--- "वर्षा ऋतु आ गई है। चार मास तक आपका प्रस्थान नहीं हो सकता। आपके परिकर का सारा दायित्व मेरे ऊपर है। जो भी आवश्यक हो, आदेश करें । मेरे निवेदन के अनन्तर ही आप प्रस्थान का निश्चय करें।"
साकेत में प्रतिदिन महोत्सव होने लगे । तीन मास बीत गये। विशाखा का महालसा आभूषण तब भी तैयार न हो सका। प्रबन्ध-कर्ता श्रेष्ठी के पास आये और उन्होंने कहा"स्वामिन् ! आपके घर किसी वस्तु की अल्पता नहीं है। भोजन पकाने के लिए ईंधन की अल्पता हो गई।" श्रेष्ठी ने तत्काल निर्देश दिया--"गजशाला, अश्वशाला और गोशाला के स्तम्भ उखाड़ लो और उन्हें ईधन के रूप में काम लो।" वैसा ही किया गया, किन्तु. आधा महीना ही बीता होगा कि ईंधन की फिर अल्पता हो गई । श्रेष्ठी को स्थिति से पुन: परिचित किया गया। श्रेष्ठी ने निर्देश दिया--"इस समय ईबन सुलभता से नहीं मिल सकता ; अतः कपड़े के गोदाम खोल दो। मोटी-मोटी साड़ियों की बत्ती बनाओ, तेल में भिगोओ, उन्हें जलाओ और भोजन पकाओ।" चार मास का समय पूरा हो गया । विशाखा का महालता प्रसाधन भी बन कर तैयार हो गया। दस शिक्षाएं
धनंजय ने विशाखा को पतिगृह-प्रेषित करने का निश्चय किया। कन्या को अपने पास बुलाया और उसे पतिकुल का आचार बताते हुए दस शिक्षाएं दी :
१. घर की आग बाहर नहीं ले जानी चाहिए। २. बाहर की आग घर में नहीं लानी चाहिए। ३. देने वालों को ही देना चाहिए। ४. न देने वालों को नहीं देना चाहिए। ५. देने वालों को व न देने वालों को भी देना चाहिए। ६. सुख से बैठना चाहिए। .. ७. सुख से खाना चाहिए। ८. सुख से लेटना चाहिए। ... ६. अग्नि की तरह परिचरण करना चाहिए। १०. घर के देवताओं को नमस्कार करना चाहिए ।
धनंजय विशाखा को जब ये शिक्षाएं दे रहा था ; मृगार श्रेष्ठी ने भी बाहर बैठे यह सब कुछ सुना। दहेज
धनंजय ने सभी श्रेणियों को एकत्रित किया और राज-सेना के बीच आठ कौटुम्बिकों (पंचों) को दायित्व सौंपा .. "यदि पति-गृह में मेरी कन्या का कोई अपराध हो जाय, तो आप उसका शोधन करना।" धनंजय ने विशाखा को नौ करोड के य महालता प्रसाधन (एक प्रकार का आभूषण) से विभूषित किया और दहेज में प्रचुर धन-सामग्री दी। वह सामी पचपन सौ गाड़ों में भरी गई । पाँच-पांच सौ गाड़ों में धन, स्वर्ण, रजत और ताम्र के आभूषण, सिक्के व बर्तन थे । पाँच-पाँच सौ गाड़ों में घी, चावल और धान था । पन्द्रह
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