________________
२४८
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
प्रसेनजित् कोशल ने दृढ़ स्वर में कहा---'"बिना पाये मैं भी नहीं जाऊँगा।"
राजा ने अमात्यों से परामर्श किया और निश्चय किया --"जोतिय आदि महाकुलों को कहीं अन्यत्र प्रेषित करना पृथ्वी-प्रकम्प के सदृश है; अतः यह तो उचित नहीं है । मेण्डक महाश्रेष्ठी का पुत्र धनंजय यदि जा सके तो समाधान हो सकता है।"
बिम्बिसार ने धनंजय को बुलाया और कहा -“कोशल-राजा एक श्रेष्ठी को अपने राज्य का मुख्य अंग बनाना चाहते हैं । क्या तुम उसके साथ जाओगे ?'
धनंजय ने विनम्रता से उत्तर दिया- "यदि आप अनुज्ञा करेंगे तो अवश्य जाऊँगा" बिम्बिसार ने प्रसन्नतापूर्वक निर्देश दिया--"तो तुम अपना प्रबन्ध करो।"
धनंजय ने अपनी सारी व्यवस्थाएं कीं और राजा बिम्बिसार के पास उपस्थित हुआ। बिम्बिसार ने उसका बहुत सम्मान किया और राजा प्रसेनजित् कोशल को प्रसन्नतापूर्वक उपहार के रूप में उसे समर्पित किया। कोशल-राजा ने उसे सहर्ष स्वीकार किया और श्रावस्ती की ओर प्रयाण किया। मार्ग में एक रात ठहर कर वे दोनों श्रावस्ती के लगभग निकट पहुँच गये । श्रावस्ती वहां से केवल सात योजन दूर थी। सन्ध्या का समय हो गया था; अतः वहीं डेरा डाला गया। धनंजय ने राजा से पूछा- "यह राज्य किसका है ?''
"श्रेष्ठिन् ! मेरा ही है।" "यहाँ से श्रावस्ती कितनी दूर है?' "सात योजन ।”
"नगर में जन-संकुलता अधिक होती है। हमारा परिजन-परिकर अधिक है; अतः यदि अनुज्ञा हो तो हम यहीं बस जायें।"
प्रसेनजित् कोशल ने अनुज्ञा दे दी। वहीं नगर बसा दिया गया। राजा ने वह नगर और अन्य चौदह ग्राम धनंजय को प्रदान कर दिये। वहाँ सायं वास किया गया था; अतः उस नगर का साकेत नामकरण हुआ ।' विशाखा का चयन
___ श्रावस्ती में मृगार श्रेष्ठी रहता था। उसके पुत्र का नाम पूर्णवर्द्धन था । जब वह यौवन में आया, उसके विवाह की तैयारियां होने लगी। मृगार श्रेष्ठी ने अपने कुशल पुरुषों को योग्य कन्या की खोज में भेजा। श्रावस्ती में कुमार के उपयुक्त कन्या नहीं मिली । वे साकेत आये । विशाखा उस समय पाँच सौ कुमारियों के साथ एक महावापी पर उत्सव में लीन हो रही थी। वे पुरुष साकेत की गली-गली में घूमे, पर, वहाँ भी उन्हें कोई उपयुक्त कन्या दृष्टिगत नहीं हुई। वे नगर से बाहर आये और नगर-द्वार पर खड़े भावी योजनाओं पर विमर्षण कर रहे थे। सहसा वर्षा आरम्भ हो गई । विशाखा के साथ आई हुई पाँच सौ कन्याएँ भीगने के भय से शीघ्रता से दौड़ कर समीपवर्ती एक शाला में घुस गईं। उन पुरुषों ने उन्हें भी एक-एक कर देखा, पर, उन्हें कोई कन्या उपयुक्त नहीं लगी। विशाखा मन्द गति से चलती हुई उन सब से पीछे आई और शाला में प्रविष्ट हुई । उन पुरुषों ने उसे देखा। उसकी भव्यता और शालीनता से वे आकृष्ट हुए। उन्होंने यह भी सोचा, अन्य कन्याएं भी इतनी रूपवती हो सकती हैं। किसी-किसी का रूप पके नारियल की तरह होता है; अत: देखना चाहिए, वह कितनी मधुर-भाषिणी है। वे विशाखा के पास आये और उससे कहा--- "अम्म ! क्या तुम वृद्धा हो?"
१. धम्मपद-अट्ठकथा, ४-८ के आधार पर।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org