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इतिहास और परम्परा ]
प्रमुख उपासक उपासिकाएं
उसका ज्येष्ठपुत्र धनंजय, धनंजय की पत्नी सुमनादेवी व उसका दास पूरण; ये पाँच महापुण्यात्मा थे।
दिव्य बल
गृहपति मेण्डक स्नान से निवृत्त होकर, धान्यागार को संमार्जित करवा कर, जब उनके द्वार पर बैठता था तो आकाश से अनाज की धारा गिर कर धान्यागार को भर देती थी । चन्द्रपद्मा का दिव्य बल था कि एक आढ़क चावल व सूप से वह अपने समस्त दासदासियों को भोजन परोस सकती थी तथा जब वह वहाँ से नहीं उठती, वह सामग्री समाप्त नहीं होती । धनंजय का दिव्य बल था, एक हजार मुद्राएँ थैली में भर कर वह अपने यहाँ काम करने वाले दास, कर्मकर व सभी पुरुषों को छः मास का वेतन चुका देता था और वह थैली जब तक उसके हाथ में रहती थी, खाली नहीं होती थी । सुमनादेवी का दिव्य बल था, एक बटलोई में चार द्रोण प्रमाण अनाज भर कर दास, कर्मकर व सभी पुरुषों को छ: मास तक का भोजन दे देती थी और जब तक वह वहाँ से नहीं उठती, बटलोई खाली भी नहीं होती थी । दास पूरण का दिव्य बल था कि जब वह हल जोतता तो एक ही साथ सात सीताएं निकलती थीं ।
मगधराज सेनिय बिम्बिसार ने गृहपति मेण्डक के दिव्य बल के बारे में जब सुना, तो अपने एक सर्वार्थक महामात्य को उसकी पूरी छान-बीन के लिए भेजा । वह सेना के साथ गृहपति मेण्डक के घर आया, सबके दिव्य बल को प्रयोगात्मक विधि से देखा और पुन: लौट कर उसने वृत्त बिम्बिसार को निवेदित किया ।
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बुद्ध एक बार भद्दिया आये | गृहपति मेण्डक ने सूचना पाकर विशाखा को बुद्ध का स्वागत करने का निर्देश दिया । अपने परिवार की पाँच सौ कन्याओं तथा पाँच सौ दासियों के साथ पाँच सौ रथों पर आरूढ़ होकर विशाखा चली । जहाँ तक रथ जा सकते थे, वहाँ तक रथ से और उसके बाद पैदल ही शास्ता के पास पहुँची । वन्दना की और एक ओर खड़ी हो गई । भगवान् ने उसे देशना दी । देशना के अंत में पाँच सौ कन्याओं के साथ वह स्रोतापत्ति - फल में प्रतिष्ठित हुई । मेण्डक श्रेष्ठी भी बुद्ध के पास आया, देशना सुनी और वह भी स्रोतापत्ति- फल में प्रतिष्ठित हुआ । गृहपति मेण्डक ने अगले दिन के लिए भिक्षु संघ के साथ गौतम बुद्ध को निमंत्रित किया । उत्तम खाद्य-भोज्य से उसने बुद्ध व संध को संतर्पित किया । इसी प्रकार आठ मास तक गृहपति मेण्डक ने महादान किया । शास्ता भद्दिया में यथेच्छ विचरण कर अन्यत्र चले गये ।
महापुण्य पुरुष का प्रेषण
राजा बिम्बिसार और राजा प्रसेनजित् कोशल एक-दूसरे के बहनोई थे । राजा प्रसेनजित् कोशल ने एक बार सोचा, राजा बिम्बिसार के राज्य में पाँच अमित भोग-सम्पन्न महापुण्य व्यक्ति निवास करते हैं । मेरे राज्य में एक भी नहीं है । क्यों न बिम्बिसार से याचना कर एक महापुण्य पुरुष को मैं अपने राज्य में ले आऊँ । प्रसेनजित् कोशल राजगृह आया । बिम्बिसार ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा। प्रसेनजित् कोशल ने अपनी भावना व्यक्त की । बिम्बिसार ने कहा- "हम महाकुलों को हटा नहीं सकते ।"
१. धम्मपद - अट्ठकथा, ४-८ के आधार पर |
२. विनय पिटक, महावग्ग, ६-६-१ व २ के आधार पर ।
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