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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
शालायें, प्रपा, प्रपागृह, स्नानागार, पुष्करिणी व मण्डप आदि भी बनवाये ।" इस प्रकार आठ करीस भूमि में विहार आदि के निर्माण में आठ करोड़ रुपये व्यय हुए।
भगवान् बुद्ध वैशाली आदि में क्रमश: चारिका करते हुए श्रावस्ती आये । अनाथपिण्डिक के जेतवन में ठहरे। सूचना पाकर अनाथपिण्डिक हर्षितचिस आया । भगवान् को अभिवादन कर एक ओर बैठ गया और उसने भिक्षु संघ - सहित दूसरे दिन के भोजन का निमन्त्रण दिया । भगवान् ने मौन रह कर उसे स्वीकार किया। दूसरे दिन अनाथपिण्डिक ने प्रत्यूष काल से ही भोजन की तैयारी आरम्भ की। समय पर संघ सहित बुद्ध आये। उन्हें अपने हाथों भोजन परोसा और संतर्पित किया । भोजन से निवृत्त होकर भगवान् जब एक ओर बैठे, तो अनाथfufuse ने विनम्र निवेदन किया- “ भन्ते ! जेतवन के लिए मैं अब क्या करूँ ?"
भगवान् बुद्ध ने उत्तर दिया – “तू इसे आगत-अनागत चातुर्दिश संघ के लिऐ प्रदान
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कर दे ।"
अनाथपिण्डिक ने बुद्ध के उस निर्देश को शिरोधार्य किया और उसी समय उसने उसे आगत-अनागत चातुर्दिश संघ को समर्पित कर दिया । भगवान् बुद्ध ने अनाथपिण्डिक के उस दान का अनुमोदन किया और आसन से उठ कर चले गये ।
भगवान् बुद्ध का श्रावस्ती में उसके बाद पुनः पुनः आगमन होता रहा और वे अधिकांशतया अनाथपिण्डिक के उसी जेतवन के विहार में ठहरते रहे। यहीं से उन्होंने भिक्षु संघ के लिए बहुत सारे नये नियमों की संघटना की ।
मृत्यु शय्या पर
जीवन के अन्तिम समय में अनाथपिण्डिक रुग्ण हुआ । बुद्ध से कहलाया - " मैं रुग्ण हूँ । से यहीं मेरा वन्दन स्वीकार हो ।" सारिपुत्र से कहलाया - "कृपया, आप मेरे घर पर आकर दर्शन दें । " सारिपुत्र आनन्द को साथ लेकर अनाथपिण्डिक के घर गये । वह अनेक व्याधियों से पीड़ितथा । सारिपुत्र ने उसे इन्द्रिय-संयम और अनाशक्ति का उपदेश दिया । अनाथपिण्डिक हर्षातिरेक में रो पड़ा । बोला- “भगवन् ! मैंने शास्ता के समीप जीवन भर धर्म-कथाएँ सुनीं । पर, आज की यह धर्म-कथा प्रथम ही है ।" सारिपुत्र लौटे । अनाथपिण्डिक काल-धर्म को कर तुषित-काय ( देवलोक ) में उत्पन्न हुआ । वहाँ से अनाथपिण्डिक देवपुत्र ने जेतवन में आकर शास्ता के दर्शन किये और उनका अभिवादन किया । *
अनाथपिण्डिक के अन्तिम समय में सारिपुत्र का उसके घर पहुँचना लगभग वैसा ही है, जैसा गौतम गणधर का आनन्द श्रावक के घर पहुँचना ।
विशाखा मृगार माता
विशाखा का जन्म अंग देशान्तर्गत भद्दिया नगर में हुआ । गृहपति मेण्डक उसके दादा, धनंजय उसके पिता व सुमना देवी उसकी माता थी । गृहपति मेण्डक की गणना जोतिय, जटिल, पुण्णक और काकबलिय के साथ अमित भोग-सम्पन्न पाँच महानुभावों में की जाती ये पाँचों ही मगधराज सेनिय बिम्बिसार के राज्य में थे । पाँचों में प्रत्येक के यहाँ दिव्य बल-सम्पन्न पाँच-पाँच व्यक्ति थे । गृहपति मेण्डक के यहां वह स्वयं, उसकी पत्नी चन्द्रपद्मा,
१. विनय पिटक, चुल्लवग्ग, ६-३-१ के आधार पर । २. विनय पिटक अट्ठकथा |
३. विनय पिटक, चुल्लवग्ग, ६-३-६ के आधार पर ।
४. मज्झिमनिकाय, अनाथपिण्डिकोवाद सुत्त, ३-५-१ ।
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