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________________ इतिहास और परम्परा प्रमुख उपासक-उपासिकाएं २४५ पिण्डिक उनके समीप बैठा और निवेदन किया -"भन्ते ! भिक्षु-संघ के साथ श्रावस्ती में वर्षावास स्वीकार करें।" बुद्ध ने कहा-“गृहपति ! तथागत शून्य आगार में ही अभिरमण करते हैं।" "भन्ते ! मैं समझ गया; सुगत ! मैं समझ गया।" गृहपति अनाथपिण्डिक के राजगृह में बहुत से मित्र थे। वहां वह अपना काम समाप्त कर श्रावस्ती की ओर चला। मार्गवर्ती ग्रामों में सर्वत्र उसने निर्देश दिया—"आर्यो ! प्रत्येक योजन पर आराम बनाओ। विहार प्रतिष्ठित करो । लोक में अब बुद्ध उत्पन्न हो गये हैं। मैंने श्रावस्ती के लिए उन्हें निमंत्रित किया है। वे इसी मार्ग से आयेंगे।" जो मार्गवर्ती धनिक थे, उन्होंने अपने व्यय से आराम बनाया और जो इतने अर्थ-सम्पन्न नहीं थे, उन्हें अनाथपिण्डिक ने धन दिया। अनाथपिण्डिक की प्रेरणा से मार्गवर्ती सभी ग्रामवासियों ने बहत शीघ्र ही आराम बनाये और विहार प्रतिष्ठित किये। जेतवन निर्माण और दान ___ अनाथपिण्डिक ने श्रावस्ती पहुँच कर आराम के उपयुक्त स्थान का चारों ओर पर्यवेक्षण किया। उसने सोचा, स्थान ऐसा होना चाहिए, जो शहर से न अधिक दूर हो, न अधिक समीप । इच्छुक व्यक्तियों को वहाँ पहुँचने में कोई बाधा भी नहीं होनी चाहिए। दिन को वहाँ भीड़ कम हो । रात को अल्प निर्घोष, विजन-वात और एकान्त हो, जो ध्यान के योग्य हो सके । उसने जेत राजकुमार का उद्यान देखा। वह उसे सब तरह से उपयुक्त जंचा । वह जेत राजकुमार के पास आया और उससे कहा-'आर्यपुत्र ! ओराम बनाने के लिए आप अपना उद्यान मुझे दें।" राजकुमार ने कहा-"गृहपति ! कोटि-संथार से भी वह उद्यान अदेय है।" अनाथपिण्डिक ने तत्काल कहा-"आर्यपुत्र ! मैंने उद्यान ले लिवा।" राजकुमार ने उसका प्रतिवाद किया- “गृहपति ! तू ने वह नहीं लिया।" लिया या नहीं, उन्होंने व्यवहार-अमात्यों (न्यायाध्यक्षों) से पूछा, तो उन्होंने कहा"आर्यपुत्र ! क्योंकि तू ने मोल किया ; अतः वह लिया गया।" अनाथपिण्डिक ने उसी समय गाड़ियां भर कर हिरण्य (मोहरें) मँगाया और जेतवन में एक दूसरे से सटा कर बिछाया। इस प्रकार अठारह करोड़ का एक चहवच्चा (छोटा तलगृह) खाली हो गया।" द्वार के कोठे के समीप थोड़ा स्थान रिक्त रह गया । अनाथपिण्डिक ने अपने नौकरों को हिरण्य लाने और उस रिक्त स्थान को भरने का निर्देश दिया। जेत राजकुमार के मन में सहसा विचार उत्पन्न हुआ---"यह गृहपति यदि इतना हिरण्य व्यय कर रहा है, तो यह कार्य भी विशेष महत्वपूर्ण है । क्यों न मैं भी इसमें सम्मिलित होऊँ।" राजकुमार ने तत्काल अनाथपिण्डिक से कहा--"गृहपति ! इस रिक्त स्थान को तू न भर। इसके लिए तू मुझे अवकाश दे। यह मेरा दान होगा।" अनाथपिण्डिक ने सोचा-"जेत राजकुमार गणमान्य पुरुष है । इस धर्म विनय में ऐसे पुरुष का अनुराग होना लाभदायक है।" उसने वह स्थान राजकुमार को दे दिया। राजकुमार ने वहाँ एक बड़ा कमरा बनवाया। अनाथपिण्डिक ने जेतवन में विहार बनवाये। उनके साथ ही परिवेण, कोठरियाँ, उपस्थानशालायें, अग्नि-शालायें, कल्पिक कुटियां, शौचस्थान, मूत्रालय, चंक्रमण-वेदिका, चंक्रमण १. विनय पिटक-अटकथा । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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