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________________ २४२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : १ योद्धा और गिर पड़े और इस तरह श्रेणिक के सारे अंग-रक्षक, सुलसा के सब पुत्र वहाँ काम आ गये । बत्तीस ही पुत्रों की एक साथ मृत्यु से सुलसा को बहुत आघात लगा । वह दृढ़ धार्मिक थी, पर, अपने पुत्रों के अनुराग से विहल हो उठी । प्रधानमन्त्री अभयकुमार उसे ढाढ़स बंधाने के लिए आया । उसने भी उसको बहुत सान्त्वना दी। सुलसा ने अपने विवेक को जागृत किया और धर्म ध्यान में लीन हो गई । महावीर द्वारा प्रशंसा भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए एक बार चम्पा नगरी में आये । नगर के बाहर समवसरण की रचना हुई । परिषद् धर्मोपदेश सुनने के लिए आई । राजगृह का अम्बड़ श्रावक भी भगवान् की देशना सुनने व दर्शन करने के लिए आया । वह अपनी विद्या के आधार पर नाना रूप बदल सकता था । देशना के अन्त में उसने भगवान् से निवेदन ---- किया "भन्ते ! आपके उपदेश से मेरा जन्म सफल हो गया । आज मैं राजगृह जा रहा हूँ ।" भगवान् महावीर ने कहा- "राजगृह में एक सुलसा श्राविका है। वह अपने श्रावकधर्म में बहुत दृढ़ है । ऐसे श्रावक विरल ही होते हैं ।" अन्य उपस्थित व्यक्तियों व अम्बड़ श्रावक ने सोचा - "सुलसा सचमुच ही बड़ी पुण्यशालिनी है, जिसको स्वयं भगवान् ने इस प्रकार बताया है ।" अम्बड़ के मन में आया, सुलसा का ऐसा कौन-सा विशेष गुण है, जिसको लेकर भगवान् ने उसे धर्म में दृढ़ बताया । मुझे उसकी परीक्षा तो करनी चाहिए। वह एक परिव्राजक के रूप में सुलसा के घर आया । सुलसा से उसने कहा--"आयुष्मती ! तुम मुझे भोजन दो। इससे तुझे धर्म होगा ।" सुलसा ने उत्तर दिया – “मैं जानती हूँ, किसे देने में धर्म होता है और किसे देने में केवल व्यवहार-साधन ।" अम्बड़ द्वारा परीक्षा अम्बड़ वहाँ से लौट आया। उसने तपस्या आरम्भ कर दी और पद्मासन लगा कर निरालम्ब आकाश में ठहर गया । यह एक अद्भुत चमत्कार था । दर्शकों की अपार भीड़ उमड़ पड़ी। नगर व आस-पास के सहस्रों व्यक्ति वहाँ आने लगे और अम्बड़ की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करने लगे । सुलसा ने भी यह सब घटना सुनी, पर, उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। वह न वहाँ गई और न उसने उसके बारे में किसी से एक शब्द भी कहा । लोग अम्बड़ की तपस्या से प्रभावित हुए। सभी ने अपने-अपने घर भोजन करने के लिए उसे आमंत्रित किया, पर, उसने किसी का भी निमन्त्रण स्वीकार नहीं किया । आखिर जनता उससे पूछने लगी- "तपस्विन् ! आपके भोजन का लाभ किस सौभाग्यशाली को प्राप्त होगा ?" अम्बड़ ने कहा – “सुलसा को ।" लोग दौड़े-दौड़े सुलसा के घर आये और उसे अत्यधिक बधाइयाँ देने लगे । उन्होंने उसे सूचित किया - " अम्बड़ जैसे महातपस्वी ने तेरी बिना प्रार्थना के भी भोजन करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। अब तुम चलो और उनसे प्रार्थना करो। तुम तो निहाल हो जाओगी ।" सुलसा ने एक ही वाक्य में उन सबको उत्तर देते हुए कहा--" आप इसे तपस्या समझते हैं और मैं इसे ढोंग । " लोगों को सुलसा की बात से आश्चर्य हुआ और उन्होंने अम्बड़ से भी जाकर कहा । अम्बड़ ने यह अच्छी तरह जान लिया कि सुलसा परम सम्यकदृष्टि हैं और वह अरिहन्त व Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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