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इतिहास और परम्परा
प्रमुख उपासक-उपासिकाएँ
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क्षमाशीलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। शक्रेन्द्र का कहना था कि वह सम्यक्त्व श्रावक-व्रत में में इतनी दृढ़ है कि देव, दानव या मानव कोई भी उसे विचलित नहीं कर सकता। शकेन्द्र के कथन से प्रेरित होकर परीक्षा के निमित्त मैं यहाँ आया । साधु कोई नहीं था, मैं ही था। बर्तन तेरे हाथ से फिसले हैं, पर, उनमें मेरी शक्ति भी लगी है । मैं तेरी दृढ़ धार्मिकता और उपशान्तता से बहुत प्रभावित हुआ हूँ। शक्रेन्द्र का कथन वस्तुतः ठीक ही था। मैं बहुत प्रसन्न हुआ हूँ और तुझे वर मांगने के लिए आह्वान करता हूँ।" ।
___ सुलसा ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया--"धन, ऐश्वर्य व सम्मान की मेरे लिए कोई कमी नहीं है । जीवन में खलने वाला एक ही अभाव है, जिसे आप भी जानते ही हैं । मैं समझती हुँ, समय आने पर मेरा वह मनोरथ भी स्वतः फलित होगा।" अभाव की पूर्ति
देव सुलसा की भावना का बड़ा सम्मान करने लगा। वह उसके सुख-दुःख को अपना ही सुख-दुःख समझने लगा। उसने कहा-"बहिन ! ये लो, बत्तीस गोलियाँ। समय-समय पर एक-एक गोली खाना । तेरे बत्तीस पुत्र होंगे और तेरी कामना फलित होगी। इसके अतिरिक्त और भी जब कोई कभी कार्य हो, मुझे याद करना ।'' सुलसा ने वे बत्तीस गोलियाँ ले लीं और देव अन्तर्धान हो गया।
सुलसा के मन में आया, मैं बत्तीस पुत्रों का क्या करूँगी। सूने घर को भरने के लिए तो शुभ लक्षणों वाला एक पुत्र भी पर्याप्त हो सकता है। कितना अच्छा हो, यदि इन गोलियों को एक साथ ही खा लूं । इससे बत्तीस ही शुभ लक्षणों वाला एक पुत्र हो जायेगा। वह सभी गोलियाँ एक साथ ही खा गई। कुछ ही दिनों बाद सुलसा के उदर में भयंकर वेदना आरम्भ हो गई। वह तिलमिला उठी। अपने कष्ट को दूर करने का उसे कोई भी उपाय नहीं सूझा । उसने उसी देव का स्मरण किया। देव उपस्थित हुआ तो सुलसा ने अपनी व्यथा कह सुनाई। देव ने कहा --"तू ने भयंकर भूल की है । इससे एक गर्भ के स्थान पर एक साथ बत्तीस ही गर्भ रह गये हैं। अब तेरे बत्तीस ही सन्तान एक साथ पैदा होंगी और यदि उनमें से एक की भी मृत्यु हो गई तो सबकी ही मृत्यु सम्भावित है।"
सुलसा ने कहा---'"आखिर होता तो वही है, जो भवितव्यता होती है । आपके निमित्त से यदि कुछ बन भी गया, तो आखिर उसका परिणाम तो वही आया।" देव ने अनुकम्पावश अपनी विशिष्ट शक्ति से उसका कुछ कष्ट शान्त कर दिया। समय पर सुलसा ने बत्तीस पुत्रों को जन्म दिया । बत्तीसों की समान आकृति थी और समान ही व्यवहार था। उनकी सुकुमारता, भव्यता व चंचलता से प्रत्येक व्यक्ति उनकी ओर आकृष्ट हो जाता था। नाग रथिक का सूना घर एक साथ खिल उठा । जब वह अपने बच्चों की ओर पलक मारता, उसका दिल हिलोरें लेने लगता । बत्तीसों ही कुमार बड़े हुए। यौवन में उनका कुलीन कन्याओं के साथ विवाह कर दिया गया। वे साथ ही रहते व साथ ही सब कार्य करते।
राजा श्रेणिक के अंग-रक्षक के रूप में उन सबकी नियुक्ति हो गई। वे युद्ध-कला में पूर्णतः दक्ष थे। राजा श्रेणिक जब चेलणा को लेकर भूमिगत मार्ग से राजगृह की ओर दौड़ा और चेटक ने उसका पीछा किया, तो बत्तीस ही अंग-रक्षकों ने चेटक का मार्ग रोका श्रेणिक वहाँ से अपने महलों में सकुशल पहुँच गया। दोनों ही दलों में घमासान युद्ध हुआ और उसके परिणाम स्वरूप श्रेणिक का एक अंग-रक्षक मारा गया। एक की मृत्यु के साथ ही इकतीस
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