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________________ इतिहास और परम्परा) प्रमुख उपासक-उपासिकाएँ २३५ धि का दान किया और प्रथम शरणागत बने। ये बनजारे थे और इनका बुद्ध से आकस्मिक संयोग हुआ था। चित्र गृहपति बुद्ध का आदर्श व चर्चावादी उपासक था। उसने निगण्ठ नातपुत्त से भी वर्चा की थी। एक बार सुधम्म भिक्षु के साथ उसका मतभेद हो गया। सुधम्म बुद्ध के पास गया। बुद्ध ने कहा- "सुधम्म ! तुम्हारा ही दोष है। जाओ, चित्र से क्षमा मांगो।" यह ठीक वैसा ही लगता है, जैसा महावीर ने गौतम को आनन्द के सम्बन्ध में कहा था। चित्र गृहपति की मरण-वेला पर देवता उपस्थित हुए। उन्होंने कहा- “आप हमारे इन्द्र हों, ऐसा संकल्प करें।" चित्र ने कहा-“मैं ऐसी नश्वर कामना नहीं करता।"3 जनआगम भगवती में तापस तामली का वर्णन हैं। उसने आमरण अनशन किया। उस समय देवता आये और उसे अपना इन्द्र होने का निदान करने के लिए कहा । वह चुप रहा, यह सोच कर कि तपस्या को बेचना अलाभ और अशिव के लिए होगा। जीवक कौमार भृत्य बिम्बिसार का राज-वैद्य था। सुदूर राज्यों तक राज-कुलों में, श्रेष्ठ-कुलों में इसकी महिमा थी। इसने अनेक अनहोने उपचार अनहोने ढंग से किये थे। बिम्बिसार ने इसे राज्य-वैद्य के रूप में स्थापित करने के साथ-साथ बुद्ध और उनके भिक्षुसंघ की सेवा के लिए भी स्थापित किया था। यह राजगृह की सालवती-नामक नगर वधू का पुत्र था। कूड़े के ढेर पर फेंक दिये जाने के कारण अभयकुमार के महलों में इसका पालन हुआ। तक्षशिला में इसकी शिक्षा हुई। अंगुत्तर निकाय अट्ठकथा व विनयपिटक आदि में इसके द्वारा किए गये बुद्ध के तथा अन्य व्यक्तियों के अद्भुत उपचारों का रोचक वर्णन है। बौद्ध' मान्यता के अनुसार उस युग का यह एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति था। इसने ही बुद्ध से अजातशत्रु का प्रथम सम्पर्क कराया था, पर, जैन-आगमों व जैन पुराण-साहित्य में जीवक के विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता।। जैन परम्परा में आनन्द और सुलसा तथा बौद्ध परम्परा में अनाथपिण्डिक और विशाखा मृगार माता के जीवन-प्रसंग परम्परा-बोध के प्रतीक माने जा सकते हैं। उन्हें यहां क्रमशः दिया जा रहा है। गृहपति आनन्द वाणिज्य ग्राम में जितशत्रु का राज्य था। उसकी ईशान दिशा में बुतिपलाश नामक एक उद्यान भी था। द्युतिपलाश यक्ष का वहाँ आयतन था; अतः उसका वही नामकरण हो गया । गृहपति आनन्द उसी वाणिज्य ग्राम का निवासी था। उसकी पत्नी का नाम शिवानन्दा श्रा। वह अत्यन्त सुरूपा, कला-कुशल व पति-भक्ता थी। गृहपति आनन्द का दाम्पत्यजीवन बहुत ही सुखपूर्ण था। उसके पास प्रचुर सम्पत्ति थी। चार करोड़ हिरण्य उसकी १. विशेष विवरण देखें, 'त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त' प्रकरण के अन्त र्गत 'चित्र गृहपति'। २. देखें इसी प्रकरण में 'गृहपति आनन्द' । ३. संयुत्त नकाय, ३६।१।१० ; Dictionary of Pali Proper Names, vol. I, pp. 866. ४. शतक ३, उद्देशक १। ५. अंगुत्तर निकाय-अट्ठकथा (खण्ड २, पृ ३६६) में उसे अभयकुमार का पुत्र माना गया है। Jain Education International 2010 05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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