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________________ इतिहास और परम्परा पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियाँ २३१ जैसे कोई सखे पत्तों से मरी गाड़ी चल रही हो, कोयलों से भरी गाड़ी चल रही हो। वे अपने तप के तेज से दीप्त थे।' स्कन्दक तपस्वी को बोलने में ही नहीं; बोलने का मन करने मात्र से ही क्लान्ति होने लगी। अपने शरीर की इस क्षीणावस्था का विचार कर वे महावीर के पास आए। उनसे आमरण अनशन की आज्ञा मांगी। अनुज्ञा पा, परिचारक भिक्षओं के साथ विपूलाचल पर्वत पर आए। यथाविधि अनशन ग्रहण किया। एक मास के अनशन से काल-धर्म को पा अच्युत्कल्प स्वर्ग में देव हुए । महावीर के पारिपारिवकों में इनका भी उल्लेखनीय स्थान रहा है। पंचमांग भगवती में इनके जीवन और इनकी साधना पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। महावीर की भिक्षणियों में चन्दनबाला के अतिरिक्त मृगावती, देवानन्दा, जयन्ती, सुदर्शना आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं। ___ महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियों की यह संक्षिप्त परिचय-गाथा है। विस्तार के लिए इस दिशा में बहुत अवकाश है। जो लिखा गया है, वह तो प्रस्तुत विषय की झलक मात्र के लिए ही यथेष्ट माना जा सकता है। १. तए णं से खंदए अणगारे तेणं उरालेणं, विउलेणं, .. महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के, लुक्खे, निम्मसे, अद्वि-चम्मावणद्धे, किडिकिडियाभूए, किसे, धमणि संतए जाए यावि होत्था। जीवं-जीवेण गच्छइ, जीवंजीवेण चिट्ठइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलायति । से जहानामए कट्ठसगडिया इ वा, पत्तसगडिया इ वा, पत्त-तिल-मंडगसगडिया इ वा, एरंडकट्ठसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससई गच्छइ, ससई चिट्ठइ, ऐवामेव खंदए वि अणगारे ससई गच्छइ ससद्द चिट्ठइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं, हुयासणे विव भासारासिपडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तव-तेयसिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठइ। -भगवती सुत्त, श० २, उ०१ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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