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________________ इतिहास और परम्परा] पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियाँ २२६ आदि संभला कर घर जाने का निश्चिय किया ?" मेघकुमार ने कहा- "भगवन् ! आप सत्य कहते हैं।" महावीर ने उन्हें संयमारूढ़ करने के लिए नाना उपदेश दिए तथा उनके पूर्व भव का वृत्तान्त बताया। मेधकुमार पुनः संयमारूढ़ हो गया। मेघकुमार भिक्षु ने जाति-स्मरण ज्ञान पाया। एकादशांगी का अध्ययन किया। गुणरत्नसंवत्सर-तप की आराधना की। भिक्षु की 'द्वादश प्रतिमा' आराधी । अन्त में महावीर से आज्ञा ग्रहण कर वैभार गिरि पर आमरण अनशन कर उत्कृष्ट देव-गति को प्राप्त हुए।' बौद्ध परम्परा में सद्यः दीक्षित नन्द का भी मेधकुमार जैसा ही हाल रहा है। वह अपनी नव विवाहिता पत्नी जनपद कल्याणी नन्दा के अन्तिम आमंत्रण को याद कर दीक्षित होने के अनन्तर ही विचलित-सा हो गया। बुद्ध ने यह सब कुछ जाना और उसे प्रतिबुद्ध करने के लिए ले गये। मार्ग में उन्होंने उसे एक बन्दरी दिखलाई, जिसके कान, नाक और पूंछ कटी हुई थी ; जिसके बाल जल गये थे ; जिसकी खाल फट गई थी, जिसकी चमड़ी मात्र बाकी रह गई थी तथा जिसमें से रक्त बह रहा था और पूछा-"क्या तुम्हारी पत्नी इससे अधिक सुन्दर है ?'' वह बोला-'अवश्य ।" तब बुद्ध उसे त्रायस्त्रिश स्वर्ग में ले गये। • अप्सराओं-सहित इन्द्र ने उनका अभिवादन किया। बुद्ध ने अप्सराओं की ओर संकेत कर पूछा-"क्या जनपद कल्याणी नन्दा इनसे भी सुन्दर है ?" वह बोला-"नहीं, मन्ते ! जनपद कल्याणी की तुलना में जैसे वह लुज बन्दरी थी ; इसी तरह इनकी तुलना में जनपद कल्याणी है।" बुद्ध ने कहा - "तब उसके लिए तू क्यों विक्षिप्त हो रहा है ? भिक्षु-धर्म का पालन कर । तुझे भी ऐसी अप्सराएं मिलेंगी।" नन्द पुनः श्रमण-धर्म में आरूढ़ हुआ। उसका वह वैषयिक लक्ष्य तब मिटा, जब सारिपुत आदि अस्सी महाश्रावकों (भिक्षुओं) ने उसे इस बात के लिए लज्जित किया कि वह अप्सराओं के लिए भिक्षु-धर्म का पालन कर रहा है। इस प्रकार विषय-मुक्त होकर वह अर्हत् हुआ। मेघकुमार और नन्द के विचलित होने के निमित्त सर्वथा भिन्न थे, पर, घटना-क्रम दोनों का ही बहुत सरस और बहुत समान है । महावीर मेघकुमार को पूर्व-भव का दुःख बता कर सुस्थिर करते हैं और बुद्ध नन्द के आगामी भव के सुख बता कर सुस्थिर करते हैं । विशेष उल्लेखनीय यह है कि मेघकुमार की तरह प्राक्तन भावों में नन्द के भी हाथी होने का वर्णन जातक' में है। १. पूर्व जीवन के लिए देखें, 'भिक्षु संघ और उसका विस्तार' प्रकरण । *२. जन परम्परा का 'सुन्दरी नन्द' का आख्यान भी इस बौद्ध-प्रसंग से बहुत मिलता जुलता है। यहाँ बुद्ध अपने भाई को अप्सराएं दिखलाकर प्रतिबोध देते हैं, वहाँ विषयासक्त सुन्दरी नन्द को उसके भ्राता भिक्षु अपने लब्धि-बल से बन्दरी, विद्याधरी और अप्सरा दिखा कर उसकी पत्नी सुन्दरी से विरक्त करते हैं। (द्रष्टव्य आवश्यक सूत्र, मलयगिरि टीका) ३. सुत्त निपात-अट्ठकथा, पृ० २७२; धम्मपद-अट्ठकथा, खण्ड १, पृ०६६-१०५, जातक सं० १८२ : थेरगाथा १५७; Dictionary of Pali Proper Names, Vol. 1, pp. 10-11. ४. सङ्गामावचर जातक, सं० १८२, (हिन्दी अनुवाद) खण्ड २, पृ० २४८-२५४ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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