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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
प्रथम-द्वितीय-तृतीय सप्त अहोरात्र प्रतिमा, अनेक भिक्षु एक अहोरात्र प्रतिमा, अनेक भिक्षु एक रात्रि प्रतिमा, अनेक भिक्षु सप्त सप्तमिका प्रतिमा, अनेक भिक्षु यवमध्यचन्द्र प्रतिमा तथा अनेक भिक्षु वज्रमध्यचन्द्र प्रतिमा तप करते थे।''
अन्य विशेषताओं के सम्बन्ध में वहां बताया गया है-"वे भिक्ष ज्ञान-सम्पन्न, दर्शन सम्पन्न, चारित्र-सम्पन्न, लज्जा-सम्पन्न व लाघव-सम्पन्न थे। वे ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी
और यशस्वी थे। वे इन्द्रिय-जयी, निद्रा-जयी और परिषह-जयी थे। वे जीवन की आशा और मृत्यु के भय से विमुक्त थे। वे प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं व मंत्रों में प्रधान थे। वे श्रेष्ठ, ज्ञानी, ब्रह्मचर्य, सत्य व शौच में कुशल थे। वे चारुवर्ण थे । भौतिक आशा-वाञ्छा से वे ऊपर उठ चुके थे। औत्सुक्य रहित, श्रामण्य-पर्याय में सावधान और बाह्य-आभ्यन्तरिक ग्रन्थियों के भेद में कुशल थे। स्व-सिद्धान्त और पर-सिद्धान्त के ज्ञाता थे। पर-वादियों को परास्त करने में अग्रणी थे। द्वादशांगी के ज्ञाता और समस्त गणिपिटक के धारक थे। अक्षरों के समस्त संयोगों के व सभी भाषाओं के ज्ञाता थे। वे जिन (सर्वज्ञ) न होते हुए भी जिन के सदृश थे।"
प्रकीर्ण रूप से भी अनेकानेक भिक्षु-भिक्षुणियों के जीवन-प्रसंग आगम-साहित्य में बिखरे पड़े हैं, जिनसे उनकी विशेषताओं का पर्याप्त ब्यौरा मिल जाता है।
काकन्दी के धन्य
काकन्दी के धन्य बत्तीस परिणीता तरुणियों और बत्तीस महलों को छोड़कर भिक्षु हुए थे। महावीर के साथ रहते उन्होंने इतना तप तपा कि उनका शरीर केवल अस्थि-कंकाल मात्र रह गया था। राजा बिम्बिसार के द्वारा पूछे जाने पर महावीर ने उनके विषय में कहा"अभी यह धन्य भिक्षु अपने तप से, अपनी साधना से चतुर्दश सहस्र भिक्ष ओं में महादुष्कर क्रिया करने वाला है।"3
मेघकुमार
बिम्बिसार के पुत्र मेघकुमार दीक्षा-पर्याय की प्रथम रात में संयम से विचलित हो गये। उन्हें लगा, कल तक जब मैं राजकुमार था, सभी भिक्षु मेरा आदर करते थे, स्नेह दिखलाते थे। आज मैं भिक्षु हो गया, मेरा वह आदर कहाँ ? मुंह टाल कर भिक्षु इधर-उधर अपने कामों में दौड़े जाते हैं । सदा की तरह मेरे पास आकर कोई जमा नहीं हुए। शयन का स्थान मुझे अन्तिम मिला है। द्वार से निकलते और आते भिक्षु मेरी नींद उड़ाते हैं। मेरे साथ यह कैसा व्यवहार ? प्रभात होते ही मैं भगवान् महावीर को उनकी दी हुई प्रव्रज्या वापस करूँगा। प्रातःकाल ज्यों ही महावीर के सम्मुख आया, महावीर ने अपने ही ज्ञान-बल से कहा-"मेघकुमार ! रात को तेरे मन में ये-ये चिन्ताएं उत्पन्न हुई ? तुमने पात्र-रजोहरण
१. उववाइय सुत्त, १५ । २. उववाइय सुत्त, १५-१६ ३. इमेसिणं भन्ते ! इंदभूई पामोक्खाणं चउदसण्हं समण साहसीणं कयरे अणगारे महा
दुक्कर कारए चेव महाणिज्जरकारएचेव ? एवं खलु सेणिया! इसीसिं इंदभूई पामोक्खाणं चउदसण्हं समण साहसीणं धन्ने अणगारे महादुक्करकारए चेवं महानिज्जरकारए चेव
-अणुत्तरोववाईदसाओ, वर्ग० ३, अ० १।
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