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इतिहास और परम्परा]
पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियां
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परम्परा के आनन्द बुद्ध के भिक्षु-उपासक थे। नाम-साम्य के अतिरिक्त दोनों में कोई तादात्म्य नहीं है । महावीर के भिक्षु शिष्यों में भी एक आनन्द थे, जिन्हें बुलाकर गोशालक ने कहा था- “मेरी तेजोलब्धि के अभिघात से महावीर शीघ्र ही काल-धर्म को प्राप्त होंगे।"
उपालि
उपालि प्रथम संगीति में विनय-सूत्र के संगायक थे । विनय-सूत्र उन्होंने बुद्ध की पारि पाश्विकता से ग्रहण किया था। ये नापित-कुल में उत्पन्न हुए थे। शाक्य राजा भद्दिय, आनन्द आदि पाँच अन्य शाक्य कुमारों के साथ प्रवजित हुए थे।
महाकाश्यप
महाकाश्यप बुद्ध के कर्मठ शिष्य थे। इनका प्रव्रज्या-ग्रहण से पूर्व का जीवन भी बहुत विलक्षण और प्रेरक रहा है। पिप्पलीकुमार और भद्राकुमारी का आख्यान इन्हीं का जीवन वृत्त है। वही पिप्पलीकुमार माणवक धर्म-संघ में आकर आयुष्मान् महाकाश्यप बन जाता है। इनके सुकोमल और बहुमूल्य चीवर का स्पर्श कर बुद्ध ने प्रशंसा की। इन्होंने बुद्ध से वस्त्रग्रहण करने का आग्रह किया। बुद्ध ने कहा- "मैं तुम्हारा यह वस्त्र ले भी लूं, पर, क्या तुम मेरे इस जीर्ण, मोटे और मलिन वस्त्र को धारण कर सकोगे?" महाकाश्यप ने वह स्वीकार किया और उसी समय बुद्ध के साथ उनका चीवर परिवर्तन हुआ। बुद्ध के जीवन और बौद्धपरम्परा की यह एक ऐतिहासिक घटना मानी जाती है।
महाकाश्यप विद्वान् थे । ये बुद्ध-सूक्तों के व्याख्याकार के रूप में प्रसिद्ध रह हैं। बुद्ध के निर्वाण-प्रसंग पर ये मुख्य निर्देशक रहे हैं। पांच सौ भिक्षुओं के परिवार से विहार करते, जिस दिन और जिस समय ये चिता-स्थल पहुँचते हैं; उसी दिन और उसी समय बुद्ध की अन्त्येष्टि होती है।
अजातशत्रु ने इन्हीं के सुझाव पर राजगृह में बुद्ध का धातु-निधान (अस्थि गर्भ) बनवाया, जिसे कालान्तर से सम्राट अशोक ने खोला और बुद्ध की धातुओं को दूर-दूर तक पहुँचाया। महाकाश्यप ही प्रथम बौद्ध संगीति के नियामक रहे है।
आज्ञा कौण्डिन्य, अनिरुद्ध आदि और भी अनेक भिक्षु ऐसे रहे हैं, जो बुद्ध के पारिपाश्विक कहे जा सकते हैं। द्रौतमी
- बौद्ध भिक्षुणियों में महाप्रजापति गौतमी का नाम उतना ही श्रुतिगम्य है, जितना जन परम्परा में महासती चन्दनबाला का। दोनों के पूर्वतन जीवन वृत्त में कोई समानता नहीं
१. देखें ‘गोशालक' प्रकरण । २. विस्तार के लिए देखें, 'भिक्षु संघ और उसका विस्तार' प्रकरण । ३. देखें, आगम और त्रिपिटकः एक अनुशीलन, खण्ड २ । ४. दीघ निकाय, महापरिनिव्वाण सुत्त । ५. दीघ निकाय-अट्ठकथा, महापरिनिव्वाण सुत्त । ६. विनय पिटक, चुल्लवग्ग, पंचशतिका खन्धक ।
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