________________
२२२ आगम और त्रिपटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ ऋद्धि-बल के होते हुए भी उन्होंने इसे पूर्व कर्मों का परिणाम समझ कर स्वीकार किया।'
आनन्द
कुछ दृष्टियों से बुद्ध के सारिपुत्त और मौग्गल्लान से भी अधिक अभिन्न शिष्य आनन्द थे। बुद्ध के साथ इनके संस्मरण बहुत ही रोचक और प्रेरक हैं। इनके हाथों कुछ एक ऐसे ऐतिहासिक कार्य भी हुए हैं, जो बौद्ध परम्परा में सदा के लिए अमर रहेंगे। बौद्ध परम्परा में भिक्षुणी-संघ का श्रीगणेश नितान्त आनन्द की प्रेरणा से हुआ। बुद्ध नारी-दीक्षा के पक्ष में नहीं थे। उन्हें उसमें अनेक दोष दिखते थे। केवल आनन्द के आग्रह पर महाप्रजापति गौतमी को उन्होंने दीक्षा दी। दीक्षा देने के साथ-साथ यह भी उन्होंने कहा- 'आनन्द ! यह भिक्षु-संघ यदि सहस्र वर्ष तक टिकने वाला था, तो अब पाँच सौ वर्ष से अधिक नहीं टिकेगा। अर्थात नारी-दीक्षा से मेरे धर्म-संघ की आधी ही उम्र शेष रह गई है।"२
प्रथम बौद्ध संगीति में त्रिपिटकों का संकलन हुआ। पाँच सौ अर्हत्-भिक्षुओं में एक आनन्द ही ऐसे भिक्षु थे, जो सूत्र के अधिकारी ज्ञाता थे; अतः उन्हें ही प्रमाण मान कर सुत्तपिटक का संकलन हुआ। कुछ बातों की स्पष्टता यथासमय बुद्ध के पास न कर लेने के कारण उन्हें भिक्षु-संघ के समक्ष प्रायश्चित्त भी करना पड़ा। आश्चर्य तो यह है कि भिक्षु-संघ ने उन्हें स्त्री-दीक्षा का प्रेरक बनने का भी प्रायश्चित्त कराया।
आनन्द बुद्ध के उपस्थाक (परिचारक) थे। उपस्थाक बनने का घटना-प्रसंग भी बहुत सरस है। बुद्ध ने अपनी आयु के ५६वें वर्ष में एक दिन सभी भिक्षुओं को आमन्त्रित कर कहा"भिक्षओ ! मेरे लिए एक उपस्थाक नियुक्त करो। उपस्थाक के अभाव में मेरी अवहेलना होती है। मैं कहता हूँ, इस रास्ते चलना है, भिक्ष उस रास्ते जाते हैं। मेरा चीवर और पात्र भूमि पर यों ही रख देते हैं।" सारिपुत्त, मौग्गल्लान आदि सभी को टाल कर बुद्ध ने आनन्द को उपस्थाक-पद पर नियुक्त किया।
तब से आनन्द बुद्ध के अनन्य सहचारी रहे। समय-समय पर गौतम की तरह उनसे प्रश्न पूछते रहते और समय-समय पर परामर्श भी देते रहते । जिस प्रकार महावीर से गौतम का सम्बन्ध पूर्व भवों में भी रहा, उसी प्रकार जातक-साहित्य में आनन्द के भी बुद्ध के साथ उत्पन्न होने की अनेक कथाएं मिलती हैं। आगन्तुकों के लिए बुद्ध से भेंट का माध्यम भी मुख्यतः वे ही बनते । बुद्ध के निर्वाण-प्रसंग पर गौतम की तरह आनन्द भी व्याकुल हुए। गौतम महावीर-निर्माण के पश्चात् व्याकुल हुए। आनन्द निर्वाण से पूर्व ही एक ओर जाकर दीवाल की खूटी पकड़ कर रोने लगे; जबकि उन्हें बुद्ध के द्वारा उसी दिन निर्वाण होने की सूचना मिल चुकी थी। महावीर-निर्वाण के पश्चात् गौतम उसी रात को केवली हो गए । बुद्ध-निर्वाण के पश्चात् प्रथम बौद्ध संगीति में जाने से पूर्व आनन्द भी अर्हत् हो गए। गौतम की तरह इनको भी अर्हत् न होने की आत्म-ग्लानि हुई । दोनों ही घटना-प्रसंग बहुत सामीप्य रखते हैं।
महावीर के भी एक अनन्य उपासक आनन्द थे, पर, ये गृही उपासक थे और बौद्ध १. धम्मपद अट्ठकथा, १०-७; मिलिन्दपओ, परि०४, वर्ग ४, प० २२६ । २. विस्तार के लिए देखें, आचार-ग्रन्थ और आचार-संहिता' प्रकरण। ३. वही। ४. अंगुत्तर निकाय, अट्ठकथा, १-४-१ । ५. उवासगदसाओ, अ० १।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org