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इतिहास और परम्परा ]
पारिपाश्विक भिक्षु भिक्षुणियाँ
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उक्त उद्गारों से स्पष्ट होता है, महावीर के साथ गौतम का कैसा अभिन्न सम्बन्ध
था ।
चन्दनबाला
चन्दनबाला महावीर के भिक्षु संघ में अग्रणी थी । पद से वह 'प्रवर्तिनी' कहलाती थी । वह राज - कन्या थी । उसका समग्र जीवन उतार-चढ़ाव के चलचित्रों से भरा-पूरा था । दासी का जीवन भी उसने जीया । लोह शृङ्खलाओं में भी वह आबद्ध रही, पर, उसके जीवन का अन्तिम अध्याय एक महान् भिक्षुणी संघ की संचालिका के गौरवपूर्ण पद पर बीता ।
ठाणांग व समवायांग' के अनुसार महावीर के भिक्षु संघ में सात सौ ने कैवल्य ( सर्वज्ञत्व) पाया, तेरह सौ भिक्षुओं ने अवधि ज्ञान प्राप्त किया, पाँच सौ मनः पर्यवज्ञानी हुए, तीन सौ चतुर्दश- पूर्व-घर हुए तथा इनके अतिरिक्त अनेकानेक भिक्षु भिक्षुणियां लब्धिधर, तपस्वी, वाद-कुशल आदि हुए ।
महावीर कभी-कभी भिक्षु भिक्षुणियों की विशेषताओं का नाम-ग्राह उल्लेख भी किया करते थे ।
त्रिपिटक साहित्य में बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षुओं का भी पर्याप्त विवरण मिल जाता है । सारिपुत्त, मोग्गल्लान, आनन्द, उपालि, महाकाश्यप, आज्ञा कौण्डिन्य आदि भिक्षु बुद्ध के अग्रगण्य शिष्य थे । जैन परम्परा में गणधरों का एक गौरवपूर्ण पद है और उनका व्यवस्थित दायित्व होता है । बौद्ध परम्परा में गणधर जैसा कोई सुनिश्चित पद नहीं है, पर, सारिपुत्त आदि का बौद्ध भिक्षु संघ में गणधरों जैसा ही गौरव व दायित्व था ।
सारिपुत्त
गणधर गौतम की तरह सारिपुत्त भी बुद्ध के अनन्य सहचरों में थे । वे बहुत सूझ-बूझ के धनी विद्वान् और व्याख्याता थे । बुद्ध इन पर बहुत भरोसा रखते थे । एक प्रसंग- विशेष पर बुद्ध ने इनको कहा - "सारिपुत्त ! तुम जिस दिशा में जाते हो, उतना ही आलोक करते हो, जितना कि बुद्ध | "3
सारिपुत्त की सूझ-बूझ का एक अनूठा उदाहरण त्रिपिटक साहित्य में मिलता है । बुद्ध का विरोधी शिष्य देवदत्त जब ५०० वज्जी भिक्षुओं को साथ लेकर भिक्षु संघ से पृथक् हो जाता है तो मुख्यतः सारिपुत्त ही अपनी बुद्धि-कौशल से उन पाँच सौ भिक्षुओं को देवदत्त के चंगुल से निकाल कर बुद्ध की शरण में लाते हैं । *
मे गोयमा ! चिराणुगओऽसि मे गोयमा ! चिराणुवत्तीसि मे गोयमा ! अनंतरं देवकायस्स भेदा, इओ चुत्ता दो वि - भगवती, श० १४, उ० ७ ।
लोए अनंतरं माणुस्सए भवे, किं परं ? मरणा तुल्ला एगट्ठा अविसेसमणाणत्ता भविस्सामो । १. ठाणांग, सू० २३० : समवायांग, सम० ११० । २. कष्प सुत्त (सू० १४४ ) के अनुसार ७०० भिक्षु व १४०० भिक्षुणियों ने सिद्ध गति प्राप्त की ।
३. अंगुत्तर निकाय, अट्ठकथा, १-४-१ |
४. विनय पिटक, चुल्लवग्ग, संघ-भेदक- खन्धक |
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