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पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियाँ
किसी भी महापुरुष की जीवन-कथा में कुछ पात्र अवश्य ऐसे होते हैं, जो उस जीवनकथा के साथ सदा के लिए अमर रहते हैं। महावीर और बुद्ध की जीवन-चर्या में ऐसे पात्रों का योग और भी बहुलता से मिलता है।
महावीर के साथ ग्यारह गणधरों के नाम अमर हैं। ये सब भिक्षु-संघों के नायक थे । इन्होंने ही द्वादशांगी का आकलन किया ।
गौतम
गौतम सबमें प्रथम थे और महावीर के साथ अनन्य रूप से संपृक्त थे। ये गूढ़-से-गूढ़ और सहज-से-सहज प्रश्न महावीर से पूछते ही रहा करते थे। इनके प्रश्नों पर ही विशालतम आगम विवाह पण्णत्ति (भगवती सूत्र) गठित हुआ है। ये अपने लब्धि-बल से भी बहुत प्रसिद्ध रहे हैं।
__ गौतम का महावीर के प्रति असीम स्नेह था। महावीर के निर्वाण-प्रसंग पर तो वह तट तोड़ कर ही बहने लगा। उन्होंने महावीर की निर्मोह वृत्ति पर उलाहनों का अम्बार खड़ा कर दिया, पर, अन्त में संभले। उनकी वीतरागता को पहचाना और अपनी सरागता को। पर-भाव से स्वभाव में आए। अज्ञान का आवरण हटा। कैवल्य पा स्वयं अर्हत हो गए।
एक बार कैवल्य-प्राप्ति न होने के कारण गौतम को अपने पर बहुत ग्लानि हुई। उनके उस अनुताप को मिटाने के लिए महावीर ने कहा था-"गौतम ! तू बहुत समय से मेरे साथ स्नेह से संबद्ध है। तू बहुत समय से मेरी प्रशंसा करता आ रहा है। तेरा मेरे साथ चिरकाल से परिचय है। तूने चिरकाल से मेरी सेवा की है, मेरा अनुसरण किया है, कार्यों में प्रवर्तित हुआ है। पूर्ववर्ती देव-भव तथा मनुष्य-भव में भी तेरा मेरे साथ सम्बन्ध रहा है । और क्या, मृत्यु के पश्चात् भी, इन शरीरों के नाश हो जाने पर दोनों समान, एक प्रयोजन वाले तथा भेद-रहित (सिद्ध) होंगे।"
१. समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी-'चिर संसिट्ठोऽसि मे
गोयमा ! चिरसंथुओऽसि मे गोयमा ! चिरपरिचिओऽसि मे गोयमा ! चिरजुसिओऽसि
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