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इतिहास और परम्परा]
भिक्षु-संध और उसका विस्तार
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होते ही शक्य राजा, भद्दिय अनुरुद्ध, आनन्द, भृगु, किम्बिल, देवदत्त और नापित उपालि; सातों ही व्यक्तियों को चतुरंगिनी सेना-सहित उद्यान ले जाया गया। दूर तक पहुंच कर सेना को लौटा दिया गया। वहां से आगे चले और अन्य राज्य की सीमा में पहुंचकर आभूषण आदि उतारे और उत्तरीय में गठरी बांध दी। नापित उपालि के हाथों में गठरी थमाते हुए उससे कहा- "तू यहां से लौट जा। तेरी जीविका के लिए इतना पर्याप्त होगा।"
उपालि गठरी को लेकर लौट आया। मार्ग में चलते हुए उसका चिन्तन उभराशाक्य स्वभाव से चण्ड होते हैं। आभषण-सहित मेरे आगमन से जब वे जानेगे, अनायास ही यह समझ बैठेंगे कि मैंने कुमारों को मारकर आभूषण हड़प लिए हैं। वे मुझे मरवा डालेंगे। भद्दिय, अनुरुद्ध आदि राजकूमार होकर भी जब प्रवजित हो रहे हैं, तो फिर मैं भी क्यों न प्रवजित हो जाऊं । उसने गठरी खोलकर आभूषण वृक्ष पर लटका दिये और बोला- “जो देखे, वह ले जाये।" उपालि वहां से चला और शाक्य कुमारों के पास पहुंचा। तत्काल लौट आने से कुमारों ने उससे पूछा--"उपालि लौट क्यों आया ?' उपालि ने अपने मानस में उभरे चिन्तन से उन्हें परिचित किया और आभूषणों के बारे में भी उन्हें बताया।
शाक्य-कमारों ने उपालि द्वारा विहित कार्य का अनुमोदन किया और उसके अभिमत को पुष्ट करते हुए कहा-'शाक्य वस्तुतः ही स्वभाव से चण्ड होते हैं। तेरी आशंका अन्यथा नहीं है।"
उपालि को साथ लेकर शाक्य-कमार बुद्ध के पास आये। अभिवादन कर एक ओर बैठ गये। उन्होंने निवेदन किया-“भन्ते ! हम शाक्य अभिमानी हैं। यह उपालि नापित चिरकाल तक हमारा सेवक रहा है। इसे आप हमारे से पूर्व प्रव्रजित करें, जिससे कि हम इसका अभिवादन, प्रत्युत्थान आदि कर सकें। ऐसा होने से हम शाक्यों का शाक्य होने का अभिमान मदित हो सकेगा।"
बुद्ध ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। पहले उपालि प्रवजित हुआ और उसके अनन्तर छः शाक्य-कुमार।'
१. विनय पिटक, चूल्लवग्ग, संघ-भेदक-स्कन्धक, ७-१-१ व २ के आधार से ।
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