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________________ २२० आगम और त्रिपटक : एक अनुशीलन खण्ड : १ एक बार बुद्ध ने आनन्द से पूछा-"तुम्हें सारिपुत्त सुहाता है न ?" आनन्द ने कहा"भन्ते ! मूर्ख, दुष्ट और विक्षिप्त मनुष्य को छोड़कर ऐसा कौन मनुष्य होगा, जिसे आयुष्मान् सारिपुत्त न सुहाते हों। आयुष्मान् सारिपुत्त महाज्ञानी हैं, महाप्राज्ञ हैं । उनकी प्रज्ञा अत्यन्त प्रसन्न व अत्यन्त तीव्र है।" सारिपुत्त के निधन पर बुद्ध कहते हैं-"आज धर्मरूप कल्प वृक्ष की एक विशाल शाखा टूट गई है।" बुद्ध सारिपुत्त को धर्म-सेनापति भी कहा करते थे। मोग्गल्लान मोग्गल्लान का नाम भी सारिपुत्त के साथ-साथ बुद्ध के प्रधान शिष्यों में आता है। ये तपस्वी और सर्वश्रेष्ठ ऋद्धिमान् थे। जैन-परम्परा में जैसे गौतम के लब्धि-बल के विषय में अनेक बातें प्रचलित हैं; उसी प्रकार मौग्गल्लान के ऋद्धि-बल की अनेक घटनाएं बौद्ध-परम्परा में प्रचलित हैं। पाँच सौ वज्जी भिक्षुओं को देवदत्त के नेतृत्व से मुक्त करने में सारिपुत्त के साथ मोग्गल्लान का भी पूरा हाथ रहा है। बुद्ध की प्रमुख उपासिका विशाखा ने सत्ताईस करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं की लागत से बुद्ध और उनके भिक्षु-संघ के लिए एक विहार बनाने का निश्चय किया। इस कार्य के लिए विशाखा ने बुद्ध से एक मार्ग-दर्शक भिक्षु की याचना की। बुद्ध ने कहा- "तुम जिस भिक्षु को चाहती हो, उसी का चीवर और पात्र उठा लो।" विशाखा ने यह सोचकर कि मोग्गल्लान भिक्षु ऋद्धिमान हैं; इनके ऋद्धि-बल से मेरा कार्य शीघ्र सम्पन्न होगा; उन्हें ही इस कार्य के लिए मांगा । बुद्ध ने पाँच सौ भिक्षुओं के परिवार से मौग्गल्लान को वहाँ रखा। कहा जाता है, उनके ऋद्धि-बल से विशाखा के कर्मकर रातभर में साठ-साठ योजन से बड़े-बड़े वृक्ष, पत्थर आदि उठा ले आने में समर्थ हो जाते थे। जैन परम्परा उक्त समारम्भ पूर्ण उपक्रम को भिक्षु के लिए आचरणीय नहीं मानती और न वह लब्धि-बल को प्रयुज्य ही मानती है, पर, लब्धि-बल की क्षमता और प्रयोग की अनेक अद्भुत घटनाएँ उसमें भी प्रचलित हैं। महावीर द्वारा संदीक्षित नन्दीसेन भिक्षु ने, जो श्रेणिक राजा के पुत्र थे, अपने तपो-बल से वेश्या के यहां स्वर्ण-मुद्राओं की वृष्टि कर दिखाई। ___महावीर ने अंगुष्ठ-स्पर्श से जैसे समय मेरु को प्रकम्पित कर इन्द्र को प्रभावित किया; बौद्ध परम्परा में मौग्गल्लान द्वारा वैजयन्त प्रासाद को अंगुष्ठ-स्पर्श से प्रकम्पित कर इन्द्र को प्रभावित कर देने की बात कही जाती है। कहा जाता है, एक बार बुद्ध, मौग्गल्लान प्रभृति पूर्वाराम के ऊपरी भौम में थे। प्रासाद के नीचे कुछ प्रमादी भिक्षु वार्ता, उपहास आदि कर रहे थे। उनका ध्यान खींचने के लिए मौग्गल्लान ने अपने ऋद्धि-बल से सारे प्रासाद को १. संयुत्तनिकाय, अनाथपिण्डिकवग्ग, सुसिम सुत्त । २. अंगुत्तरनिकाय, १-१४ । ३. विनय पिटक, चुल्लवग्ग, संघ-भेदक-खन्धक । ४. धम्मपद-अट्ठकथा, ४-४४ । ५. देखें, पृ० २०३-४। ६. मज्झिम निकाय चूलतण्हासंखय सुत्त । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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