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इतिहास और परम्परा
भिक्षु-संघ और उसका विस्तार
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को जब यह ज्ञात हुआ तो वह बुद्ध के पास आया और प्रार्थना की-भन्ते ! मैं एक वर चाहता हूं।"
बुद्ध ने उत्तर दिया-"गौतम! तथागत वर से दूर हो चुके हैं ?" शुद्धोदन ने निवेदन किया- "भन्ते ! वह उचित है, दोष-रहित है।"
बुद्ध की स्वीकृति पाकर शुद्धोदन ने कहा-"भगवान् के प्रवजित होने पर मुझे बहुत दुःख हुआ था । नन्द के प्रवजित होने पर भी मुझे बहुत दुःख हुआ और राहुल के प्रव्रजित होने पर भी अतिशय दुःख हुआ। भन्ते ! पुत्र-प्रेम मेरा चाम छेद रहा है, चाम छेदकर मांस छेद रहा है, मांस को छेदकर नस को छेद रहा है, नस को छेदकर अस्थि को छेद रहा है, अस्थि को छेदकर घायल कर दिया है। अच्छा हो भन्ते ! आर्य (भिक्षु लोग) माता-पिता की अनुज्ञा के बिना किसी को प्रवजित न करें।"
शुद्धोदन को इस प्रसंग पर बुद्ध ने धर्मोपदेश दिया। शुद्धोदन आसन से उठ, अभिवादन व प्रदक्षिणा कर चला गया। इसी अवसर पर बुद्ध ने भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए कहा-“आर्य माता-पिता की बिना अनुज्ञा किसी को प्रव्रजित न करें। जो प्रवृजित करे, उसे दुक्कट का दोष है।"
छः शाक्यकुमार और उपालि
राहुलकुमार को प्रवजित करने के अनन्तर बुद्ध शीघ्र ही कपिलवस्तु से प्रस्थान कर मल्ल देश में चारिका करते हुये अनूपिया के आम्रवन में पहुंचे। उस समय कुलीन शाक्यकुमार बुद्ध के पास अहमहमिकया प्रवजित हो रहे थे। महानाम और अनुरुद्ध; दो शाक्य बंधु थे। अनुरुद्ध सुकुमार था। उसके शीत, ग्रीष्म व वर्षा के लिये पृथक्-पृथक् तीन प्रासाद थे। वह उन दिनों वर्षा ऋतु के प्रासाद में आमोद-प्रमोद के साथ रह रहा था। प्रासाद से नीचे भी नहीं उतरता था। शाक्यकुमारों के प्रवजित होने की घटनाएं सुनकर महानाम अपने अनुज अनुरुद्ध के पास आया और घटनाएं सुनाते हुए उसने कहा- "अपने वंश में अब तक कोई भी प्रव्रजित नहीं हुआ है। दोनों बंधुओं में से एक को अवश्य प्रव्रजित होना चाहिए।"
अनुरुद्ध ने तपाक से उत्तर दिया--"मैं सुकुमार हूं। घर छोड़कर प्रव्रजित नहीं हो सकता। आप ही प्रवजित हों।"
महानाम ने अत्यन्त वात्सल्य से कहा- "तात ! अनुरुद्ध ! मैं तुम्हें घर-गृहस्थी अच्छी तरह समझा दूं।"
अनुरुद्ध श्रवण में लीन हो गया और महानाम ने कहना आरम्भ किया। देखो, सर्वप्रथम खेत में हल चलवाने चाहिये, फिर बुआना चाहिए और फिर क्रमशः पानी भरना, पानी निकालकर सुखाना, कटवाना चाहिए, ऊपर लाना सीधा करवाना, गाटा इकट्ठा करवाना, मर्दन करवाना, पयाल हटाना, भूसी हटाना, फटकवाना तथा फिर जमा करना चाहिए। इसी क्रम से प्रतिवर्ष करना चाहिये। काम (आवश्यकता) का नाश और अंत नहीं जान पड़ता।
अनुरुद्ध ने सहसा प्रश्न किया-"काम कब समाप्त होंगे? कब उनका अंत होगा और कब हम निश्चिन्त होकर पांच प्रकार के काम-भोगों से युक्त विचरण करेंगे ?"
महानाम का उत्तर था-'तात ! अनुरुद्ध ! काम कभी समाप्त नहीं होते और न
१. जातक अट्ठकथा, निदान ४; विनय पिटक, महावग्ग, महाखन्धक, ११३।११।
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