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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: १
न कर सका कि भन्ते ! पात्र वापस लें । उसने सोचा, सीढ़ी पर पात्र ले लेंगे, किन्तु उन्होंने वहां भी पात्र नहीं लिया। सीढ़ियों से नीचे भी नहीं लिया, राज-आंगन में भी नहीं लिया और क्रमश: आगे बढ़ते ही गये । जनता ने वह देखकर जनपद - कल्याणी नन्दा से कहा“भगवान् नन्द राजकुमार को लिए जा रहे हैं । वह तुम्हें उनसे विरहित कर देंगे ।" वह बूंदें गिरते व बिना कंघी किये केशों को सहलाती हुई शीघ्रता से प्रासाद पर चढ़ी। खिड़की पर खड़ी होकर पुकारने लगी- “आर्यपुत्र ! शीघ्र ही आना ।" वह कथन उसके हृदय में उलटे शल्य की तरह चुभने लगा । बुद्ध ने फिर भी उसके हाथ से पात्र वापस नहीं लिया । संकोचवश वह भी न कह सका । विहार में पहुंचे । नन्द से पूछा - " प्रव्रजित होगा ?" उसने संकोचवश उत्तर दिया – “हां, प्रव्रजित होऊँगा ।" शास्ता ने निर्देश दिया- "नन्द को प्रव्रजित करो।" और इस प्रकार कपिलवस्तु में पहुंचने के तीसरे दिन नन्द को प्रव्रजित किया ।
सातवें दिन राहुल-माता ने राहुलकुमार को अलंकृत कर, यह कहकर भेजा - "तात ! बीस हजार श्रमणों के मध्य जो सुनहले उत्तम रूप वाले श्रमण हैं, वही तेरे पिता हैं । उनके पास बहुत सारे निधान थे, जो प्रव्रजित होने के बाद कहीं दिखाई ही नहीं देते। उनसे विरासत की याचना कर। उन्हें यह भी कहना, मैं राजकुमार हूं, अभिषिक्त होकर चक्रवर्ती बनना चाहता हूं | इसके लिये घन आवश्यक होता है । आप मुझे घन दें । पुत्र पिता को सम्पत्ति का अधिकारी होता है ।"
पूर्वाह्न के समय पात्र चीवर आदि को लेकर बुद्ध शुद्धोदन के घर भिक्षा के लिए आये । भोजन के अनन्तर माता से प्रेरित होकर राहुलकुमार बुद्ध के पास आया और बोला“श्रमण ! तेरी छाया सुखमय है ।" बुद्ध वहां से चल दिए । राहुल भी 'श्रमण ! मुझे अपनी पैतृक सम्पत्ति दो, मुझे अपनी पैतृक सम्पत्ति दो'; यह कहता हुआ उनके पीछे-पीछे चल दिया । बुद्ध ने कुमार को नहीं लौटाया । परिजन भी उसे साथ जाने से न रोक सके । वह बुद्ध के साथ आराम तक चला गया। बुद्ध ने सोचा, यह जिस धन की याचना कर रहा है, वह सांसारिक है । नश्वर है । क्यों न मैं इसे बोधिमण्ड में मिला सात प्रकार का आर्यधन २ दूं । इस अलौकिक विरासत का इसे स्वामी बना दूं । तत्काल सारिपुत्त को आह्वान किया और कहा – “राहुलकुमार को प्रव्रजित करो ।"
सारिपुत्त ने प्रश्न किया – “भन्ते ! राहुलकुमार को किस विधि से प्रव्रजित करूं ।”
बुद्ध ने इस प्रसंग पर धर्म-कथा कही और भिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहाभिक्षुओ ! तीन शरण-गमन से श्रामणेर प्रव्रज्या की अनुज्ञा देता हूं । उसका क्रम इस प्रकार है; शिर और दाढ़ी के केशों का मुण्डन करना चाहिए, काषाय वस्त्र पहनना चाहिए, एक कन्धे पर उत्तरीय करना चाहिए, भिक्षुओं को पाद-वन्दना करवानी चाहिए, ऊकड़ बैठाकर तथा बद्धांजलि कर उसे तीन बार बोलने के लिए इस प्रकार कहना - "मैं बुद्ध की शरण जाता हूं, धर्म की शरण जाता हूं, संघ की शरण जाता हूं।
सारिपुत्त ने बुद्ध द्वारा निर्दिष्ट विधि से राहुलकुमार को प्रव्रजित कर लिया । शुद्धोदन
१. उदान अट्ठकथा ३-२ अंगुत्तर निकाय अट्ठकथा १-४-८, विनय पिटक, महावग्ग
अट्ठकथा ।
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२. १. श्रद्धा, २. शील, ३. लज्जा, ४. निन्दा-भय, ५ बहुश्रुत, ६. त्याग और ७. - जातक (हिन्दी अनुवाद), भाग १, पृ० ११८ )
प्रज्ञा ।
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