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२०६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड : १ उरुवेल काश्यप उस चामत्कारिक घटना से बहुत प्रभावित हुआ। महादिव्य शक्तिधर व महाअनुभवी बुद्ध का उसने लोहा माना। उन्हें अपने आश्रम में विहार के लिए आग्रह और निवेदन किया- मैं प्रतिदिन भोजन से तुम्हारी सेवा करूंगा।"
बुद्ध वहाँ रहने लगे । एक बार उरुवेल काश्यप के समक्ष एक महायज्ञ का प्रसंग उपस्थित हुआ। उस यज्ञ में अंग-मगध-निवासी बहुसंख्यक जनता खाद्य-भोज्य सामग्री लेकर उपस्थित होने वाली थी। उरुवेल काश्यप के मन में सहसा विचार हुआ, यज्ञ-प्रसंग पर बहुत सारी जनता एकत्रित होगी। यदि इस समय महाश्रमण ने जन-समुदाय को चमत्कार दिखलाया, तो उसका लाभ व सत्कार बढ़ेगा और मेरा घटेगा। कितना सुन्दर होता, यदि महाश्रमण इस अवसर पर यहाँ न होता।
उरुवेल काश्यप का मानसिक अभिप्राय बुद्ध ने जान लिया। वे उत्तरकुरु पहुँच गये। वहाँ से भिक्षान्न ले अनवतप्त सरोवर पर भोजन किया और दिन में वहीं विहार किया। रात समाप्त हुई । उरुवेल काश्यप बुद्ध के पास पहुंचा और बोला--"महाश्रमण ! भोजन का समय है । भात तैयार हो गये हैं। महाश्रमण ! कल क्यों नहीं आये ? हम लोग आपको याद करते रहे । आपके भोजन का भाग रखा पड़ा है।"
बुद्ध ने उरुवेल काश्यप की कलई खोलते हुए उसके प्रच्छन्न मानसिक अभिप्राय को प्रकट किया और कहा- "इसीलिए मैं कल यहाँ नहीं रहा।" उरुवेल काश्यप के मन में विचार आया, महाश्रमण दिव्य शक्तिधर है। अपने चित्त से दूसरे के चित्त को सहज ही जान लेता है, फिर भी यह मेरे जैसा अर्हत् नहीं है।
उरुवेल काश्यप द्वारा प्रदत्त भोजन बुद्ध ने ग्रहण किया और उसी वन-खण्ड में विहार करने लगे। एक समय उन्हें कुछ पुराने चीवर प्राप्त हुए। उनके मन में आया, इन्हें कहाँ धोना चाहिए ? शक्रेन्द्र ने उनके अभिप्राय को जान लिया और अपने हाथ से पुष्करिणी खोद डाली। निवेदन किया--"भन्ते ! आप ये चीवर यहाँ धोएँ।" तत्काल दूसरा विचार आया, इन्हें कहाँ पछाड़। शक्रेन्द्र ने तत्काल वहाँ एक बड़ी भारी शिला रख दी। जब उनके मन में यह अभिप्राय हुआ, किसका आलम्बन लेकर नीचे उतरूं। शकेन्द्र ने तत्काल ककुध वृक्ष की शाखा लटका दी। वस्त्रों को सुखाने के लिए कहाँ फैलाऊँ, जब उनके मन में यह अभिप्राय हुआ, तो शकेन्द्र ने तत्काल एक बड़ी भारी शिला डाल दी। रात बीती। उरुवेल काश्यप बुद्ध के पास गया और भोजन के लिए निमन्त्रण दिया। अभूतपूर्व पुष्करिणी, शिला, ककुध-शाखा आदि को देखकर उनके बारे में भी पश्न किया। बुद्ध ने सारी घटना सुनाई। उरुवेल काश्यप जटिल के मन में आया, महाश्रमण दिव्य शक्तिधर है, फिर भी मेरे जैसा अर्हत् नहीं है। बुद्ध ने आहार ग्रहण किया और वहीं विहार करने लगे।
एक बार अकाल मेघ बरसा। बाढ़-सी आ गई। बुद्ध जिस प्रदेश में विहार कर रहे थे, वह पानी में डूब गया। बुद्ध के मन में आया, चारों ओर से पानी को हटाकर क्यों न मैं स्थल प्रदेश में चंक्रमण करूँ। उन्होंने वैसा ही किया। सहसा उरुवेल काश्यप के मन में आया, महाश्रमण जल में डूब गए होंगे। नाव व बहुत सारे जटिलों को साथ लेकर बुद्ध के पास आया। उन्होंने बुद्ध को स्थल प्रदेश में चंक्रमण करते देखा। उरुवेल काश्यप ने साश्चर्य पूछा-"महाश्रमण ! क्या तुम ही हो ?” बुद्ध ने कहा-"हां, मैं ही हूँ।" वे आकाश में उड़े और नाव में जाकर खड़े हो गये । उरुवेल काश्यप के मन में फिर विचार आया, महाश्रमण अवश्य ही दिव्य शक्तिधर है, किन्तु, मेरे जैसा अर्हत् नहीं है।
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