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________________ इतिहास और परम्परा] भिक्षु-संघ और उसका विस्तार २०१ महावीर के संघ में इस प्रकार और भी अनेकानेक लोग प्रवजित हुए। उनके परिचय में बताया गया है -वे उग्रवंशी, भोगवंशी, राजन्यवंशी, ज्ञात या नागवंशी, कुरुवंशी व क्षत्रियवंशी थे। बहुत सारे भट, योद्धा, सेनापति, धर्म-नीति-शिक्षक, श्रेष्ठी, इभ्य भी थे। बहुत सारे मातृ-पितृ-पक्ष से कुलीन थे । बहुत सारे रूप, विनय, विज्ञान, आकृति, लावण्य व विक्रम में प्रधान थे। सौभाग्य और कांति में अद्वितीय थे। वे विपुल धन-धान्य के संग्रह और परिवार के सम्पन्न थे। उनके यहाँ राजा द्वारा उपहृत पंचेन्द्रिय सुखों का अतिरेक था ; अतः में लान रह सकते थे, किन्तु, वे उन्हें किपाक-फल के समान ओर जीवन के जल-बद बुद व कुशाग्र-स्थित जल-बिन्दु के समान विनश्वर समझते थे। कपड़े पर लगी धूल को जिस प्रकार झटकाया जाता है, उसी प्रकार वे ऐश्वर्य आदि अध्रव पदार्थों को छोड़ने में तत्पर रहते थे। उन्होंने विपुल रजत, स्वर्ण, धन, धान्य, सेना, वाहन, कोश, कोष्ठागार, राज्य, राष्ट्र, पुर, अन्तःपुर, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख शिला-प्रवाल, पद्म राग आदि को छोड़कर प्रव्रज्या ग्रहण की थी।" बौद्ध उपसम्पदाएँ पंचवर्गीय भिक्ष पंचवर्गीय भिक्षु वाराणसी के ऋषिपसन (सारनाथ) में रहते थे। बोधि-प्राप्ति के बाद चार आर्य सत्यों का ज्ञान सर्व प्रथम किसे दिया जाये, यह चिन्तन करते हुए बुद्ध ऋषि १. उववाई, सू० १४ । २. बौद्ध वाङ्मय में श्रामणेर पर्याय को प्रव्रज्या और भिक्षु-पर्याय को उपसम्पदा कहते ३. राम, ध्वज, लक्ष्मण, मन्त्री, कौंडिन्य, भोज, सुयाम और सुदत्त-ये षडंग वेद के ज्ञाता ब्राह्मण थे। इन विद्वानों में से सात ने गौतम बुद्ध का भविष्य बताया था कि ये गृह-स्थाश्रम में रहेंगे, तो चक्रवर्ती होंगे और संन्यासी बनेंगे, तो सम्यक् सम्बद्ध होंगे । कौण्डिन्य तरुण था। उसने एक ही भविष्य बताया था कि बोधिसत्त्व निःसन्देह सम्यक् सम्बुद्ध होंगे । द्विविध भविष्य-वक्ता ब्राह्मणों ने अपने-अपने पुत्रों से कहा"सिद्धार्थ राजकुमार बुद्ध हो जाये, तो तुम उसके संघ में प्रविष्ट होना।” बोधिसत्त्व के गृह-त्याग के अवसर पर अकेला कौंडिन्य जीवित था। उसने सातों विद्वानों के पुत्रों को सिद्धार्थ राजकुमार के परिव्राजक होने की सूचना दी और कहा-"वह निश्चित हो बुद्ध होगा ; अतः हमें भी परिव्राजक हो जाना चाहिए।" उनमें से चार युवकों ने कौण्डिन्य का कथन स्वीकार किया-(१) वाष्प (वप्प), (२) भद्रिक, (३) महानाम और (४) अश्वजित् । आगे चल कर ये पांचों पंचवर्गीय भिक्षु कहलाये। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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