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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन खण्ड : १ शालिभद्र और धन्य जैन-परम्परा में शालिभद्र और धन्य का जीवन-वृत्त बहुत ही सरस और बहुत ही विश्रुत है। शालिभद्र और धन्य के परस्पर साले-बहनोई का सम्बन्ध था और दोनों ने ही महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। शालिभद्र राजगृह के धनाढ्य गृहपति गोभद्र का पुत्र था। उसकी माता का नाम भद्रा और बहिन का नाम सुभद्रा था। शालिभद्र के बाल्यकाल में ही गोभद्र गृहपति का शरीरात हो गया था। वह अगाध मातृ-वात्सल्य में पला-पुसा और तरुण हुआ। कहा जाता है, उसका पिता मर कर देव-योनि में उत्पन्न हुआ। वह अपने पुत्र एवं पुत्र-बधुओं के सुख-मोग के लिए वस्त्र और आभूषणों से परिपूरित ३३ पेटियाँ प्रतिदिन उन्हें देता था। भद्रा सारा गृहभार सम्भालती। शालिभद्र अपने महल की सातवीं मंजिल पर अहर्निश सांसारिक सुख-भोग में लीन रहता। एक दिन राजगृह में रत्न-कम्बल के व्यापारी आये। उनके पास सोलह रत्न-कम्बल थे। एक-एक कम्बल का मूल्य सवा लाख स्वर्ण-मुद्राएं था। राजगृह के बाजार में उन्हें कोई खरीददार न मिला। वे राजा श्रेणिक के पास गये । रत्न-कम्बल रानियों ने पसन्द किए, पर, एक-एक का मूल्य सवा लाख सुनकर राजा भी चौंका। राजा ने एक भी कम्बल नहीं खरीदा। व्यापारी अपने आवास के बाहर वृक्ष की छाया में बैठे बातें कर रहे थे; राजगृह जैसे नगर में भी हमें कोई क्रेता नहीं मिला तो अन्यत्र कहाँ मिलेगा ? शालिभद्र की दा राह से पनघट की ओर जा रही थीं। वह बात उनके कानों में पड़ी। पानी लेकर वापस आते समय दासियों ने व्यापारियों से पूछ लिया--"आप किसी दुर्घट चिन्ता में मालम पडते है। क्या हमें भी वह चिन्ता बतलाई जा सकती है ?" व्यापारियों ने कहा- "जो चिन्ता राजा श्रेणिक भी नहीं मिटा सका, तुम पनिहारिन हमारी क्या चिन्ता मिटाओगी?" दासियों ने कहा-"कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है।" व्यापारियों ने अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए अन्यमनस्कता से ही अपनी बात दो शब्दों में उन्हें कह डाली। दासियों ने हँस कर कहा-"बस, यही बात है ? चलो, हमारे साथ । हम एक ही सौदे में आपके सारे कम्बल बिकवा देती हैं।" व्यापारियों ने कुछ गम्भीरता से बात पूछी। दासियों ने अपने स्वामी शालिभद्र के वैभव का वर्णन किया। व्यापारी उत्सुक होकर दासियों के साथ चल पड़े। शालिभद्र का हर्म्य आया। बाहर से भी इतना आकर्षक कि राज-प्रसाद से भी अधिक । व्यापारियों ने प्रथम मंजिल में प्रवेश किया। साज-सज्जा देखकर वे विस्मित हुए। दासियों ने कहा-“यह तो हम दास-दासियों के रहने की मंजिल है।" दूसरी मंजिल पर पहुंचे और वहाँ की रमणीयता देखी। सोचा, यहाँ शालिभद्र बैठे होंगे। उन्हें बताया गया, यहाँ तो मुनीम लोग ही बैठते हैं और बही-खातों का काम करते हैं। तीसरी मंजिल पर १. एक परम्परा के अनुसार ६६ पेटियां-वस्त्र, आभूषण व भोजन की ३३-३३ पेटियां-आती थीं। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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