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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
व नगर से बाहर लाकर संस्कारित किया जाता है; अतः वह मरण निर्झरिम कहलाता है। जो साधु अरण्य में दोनों प्रकार में से किसी प्रकार से देह-त्याग करते हैं, उनका शव संस्कार के लिए कहीं बाहर नहीं लाया जाता ; अत: वह मरण अनिर्हारिम कहलाता है । पादोपगमण निर्हारिम हो, चाहे अनिर्हारिम अप्रतिकर्म होता है; क्योंकि वह मरण वैयावृत्त्य रहित होता है। भक्त-प्रत्याख्यान निर्हारिम हो या अनियरिम सप्रतिकर्म होता है ; क्योंकि वहाँ वैयावृत्त्य निषिद्ध नहीं है। स्कन्दक ! इन प्रकारों से जो जीव मरते हैं, वे नैरयिक नहीं होते और न अनन्त भावों को प्राप्त होते हैं। ये जीव दीर्घ संसार को तनु करते हैं।"
सविस्तार अपने सभी प्रश्नों के उत्तर पाकर स्कन्दक अत्यन्त आह्लादित हुआ। उसने भगवान महावीर के कथन में अत्यन्त आस्था प्रकट की और प्रव्रजित होने की अभिलाषा भी व्यक्त की। महावीर ने उसे प्रव्रजित कर लिया और तत्सम्बन्धी शिक्षा व समाचारी से परिचित किया।
श्रमण केशीकुमार
मिथिला से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान महावीर हस्तिनापुर की ओर पधारे । गणधर गौतम अपने शिष्य-समुदाय के साथ श्रावस्ती पधारे और निकटस्थ कौष्ठक उद्यान में ठहरे । उसी नगर के बाहर एक ओर तिन्दुक उद्यान था, जिसमें पार्श्वसंतानीय निर्ग्रन्थ श्रमण केशीकुमार अपने शिष्य-समुदाय के साथ ठहरे हुए थे। श्रमण केशीकुमार कुमारावस्था में ही प्रव्रजित हो गये थे। वे ज्ञान व चारित्र के पारगामी थे। मति, श्रुत व अवधि ; तीन ज्ञान से पदार्थों के स्वरूप के ज्ञाता थे।
दोनों के शिष्य-समुदाय में कुछ-कुछ आशंकाएं उत्पन्न हुई; हमारा धर्म कैसा और इनका धर्म कसा ? आचार-धर्म-प्रणिधि हमारी कैसी और इनकी कैसी ? महामुनि पार्श्वनाथ ने चतुर्याम धर्म का उपदेश किया है और स्वामी वर्धमान पाँच शिक्षारूप धर्म का उपदेश करते हैं। एक लक्ष्य वालों में यह भेद कैसा? एक ने सचेलक धर्म का उपदेश दिया है और एक अचेलक भाव का उपदेश करते हैं।
अपने शिष्यों की आशंकाओं से प्रेरित होकर दोनों ही आचार्यों ने परस्पर मिलने का निश्चय किया । गौतम अपने शिष्य-वर्ग के साथ तिन्दुक उद्यान में आये, जहां कि श्रमण केशीकुमार ठहरे हुए थे । गौतम को अपने यहां आते हुए देख कर श्रमण केशीकुमार ने भक्तिबहुमान पुरस्सर उनका स्वागत किया। अपने द्वारा याचित पलाल, कुश, तृण आदि के आसन गौतम के सम्मुख प्रस्तुत किये। उस समय बहुत सारे पाखण्डी व कोतूहल-प्रिय व्यक्ति भी उद्यान में एकत्रित हो गये थे।
गौतम से अनुमति पाकर केशीकुमार ने चर्चा को आरम्भ करते हुए कहा-"महाभाग ! वर्धमान स्वामी ने पाँच शिक्षारूप धर्म का उपदेश किया है, जब कि महामुनि पार्श्वनाथ ने चतुर्याम धर्म का प्रतिपादन किया है। मेधाविन् ! एक कार्य में प्रवृत्त होने वाले साधकों के धर्म में विशेष भेद होने का क्या कारण है ? धर्म में अन्तर हो जाने पर आपको संशय क्यों नहीं होता?"
१. भगवती श० २, उ०१ के आधार से ।
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