________________
इतिहास और परम्परा ]
जयन्ती
भिक्षु संघ और उसका विस्तार
भगवान् महावीर ने वैशाली से वत्सदेश की ओर विहार किया । कौशाम्बी वहाँ की राजधानी थी । वहाँ चन्द्रावतरण चैत्य में पधारे । सहस्त्रानीक का पौत्र, शतानीक का पुत्र, वैशाली के राजा चेटक की पुत्री मृगावती का पुत्र राजा उदयन वहाँ राज्य करता था । श्रमणोपासिका जयन्ती उदयन की बुआ थी । वह साधुओं के लिए प्रथम शय्यातर के रूप में प्रसिद्ध थी । कौशाम्बी में नव्य आगत साधु पहले पहल जयन्ती के यहाँ ही वसति की याचना करते
थे ।
I
महावीर के आगमन का संवाद सुनकर जयन्ती अपने पुत्र के साथ वन्दना करने आई । महावीर ने धर्म देशना दी । श्रमणोपासिका जयन्ती ने उपदेश सुना और उसके अनन्तर कुछ प्रश्न पूछे । उसका पहला प्रश्न था - "भन्ते ! जीव शीघ्र ही गुरुत्व को कैसे प्राप्त होता है ?" महावीर - " जयन्ती ! १. प्राणातिपात २. मृषावाद, ३. अदत्तादान, ४ मैथुन, ५. परिग्रह, ६. क्रोध, ७. मान, 5 माया, ६. लोभ, १०. राग, ११. द्वेष, १२. कलह, १३. अभ्याख्यान, १४, पैशुन्य, १५. पर-परिवार, १६. रति- अरति १७. मायामृषा और १८. मिथ्यादर्शन - ये अठारह दोष पाप हैं; जिनके आसेवन से जीव शीघ्र ही गुरुत्व को प्राप्त होता है ।"
जयन्ती -
“भगवन् ! आत्मा लघुत्व को कैसे प्राप्त होती है ?”
महावीर - " प्राणातिपात आदि के अनासेवन से आत्मा लघुत्व को प्राप्त होती है । प्राणातिपात आदि की प्रवृत्ति से आत्मा जिस प्रकार संसार को बढ़ाती है, प्रलम्ब करती है, संसार में भ्रमण करती है; उसी प्रकार उनकी निवृत्ति से संसार को घटाती है, ह्रस्व करती है और उसका उल्लंघन कर देती है ।"
नहीं ।"
१८५
जयन्ती - "भन्ते ! मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव को स्वभाव से प्राप्त होती है या परिणाम से ?"
महावीर - "मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव को स्वभाव से होती है, परिणाम से
जयन्ती - "क्या सब भव- सिद्धिक आत्माएँ मोक्षगामिनी हैं ?" महावीर - "हाँ, जो भव- सिद्धिक हैं, वे सब मोक्षगामिनी हैं ।
"1
जयन्ती - "भगवन् ! यदि भव-सिद्धिक जीव सब मुक्त हो जायेंगे, तो क्या यह संसार उन से रहित नहीं हो जायेगा ?"
महावीर - " जयन्ती ! ऐसा नहीं है । सादि व अनन्त तथा दोनों ओर से परिमित व दूसरी श्रेणियों से परिवृत्त सर्वाकाश की श्रेणी में से एक-एक परमाणु पुद्गल प्रति-समय निकालने पर अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी व्यतीत हो जाये, फिर भी वह श्रेणी रिक्त नहीं होती । इसी प्रकार भव-सिद्धिक जीवों के मुक्त होने पर भी यह संसार उनसे रिक्त नहीं होगा ।"
जयन्ती - "जीव सोता हुआ अच्छा है या जगता हुआ ?"
महावीर - "कुछ एक जीवों का सोना अच्छा है और कुछ एक का जगना ।"
जयन्ती - "भन्ते ! यह कैसे ?"
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org