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________________ १८४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ क्षय करना चाहता हूँ।" वह तत्काल वहाँ से उठा । ईशान दिशा में गया। आभरण, अलंकार आदि का व्युत्सर्जन किया । पञ्च मुष्टि लुंचन किया। प्रभु के चरणों में उपस्थित हुआ। तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणापूर्वक वन्दना की और दीक्षित होकर भगवान् के संघ में प्रविष्ट हो गया।' देवानन्दा भी ऋषभदत्त के साथ ही प्रव्रजित हुई और प्रवर्तिनी चन्दनबाला के नेतृत्व में रहने लगी। जमालि-प्रियवर्शना क्षत्रियकुण्ड ग्राम में जमालि नामक क्षत्रियकुमार रहता था। वह अत्यन्त ऐश्वर्यशाली था। वह महावीर की बहिन सुदर्शना का पुत्र था; अतः उनका भाणेज था और महावीर की पुत्री प्रियदर्शना का पति था; अतः उनका जामाता था। भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते क्षत्रिय कुण्डपुर नगर में आये। समवशरण लगा । नगर के नर-नारी एक ही दिशा में चल पड़े। जमालि क्षत्रियकुमार भी वन्दनार्थ समवशरण में आया । महावीर ने महती परिषद् में देशना दी। जमालिकुमार प्रतिबुद्ध हुआ। उसने महावीर के सम्मुख हो निवेदन किया, "भगवन् ! मुझे निर्ग्रन्थ प्रवचन रुचिकर प्रतीत हुआ है, सत्य प्रतीत हुआ है। मैं अगार धर्म से अनगार धर्म में प्रविष्ट होना चाहता हूँ।" महावीर ने कहा-जहा सुहं-जैसे सुख हो, वैसे करो, विलम्ब मत करो। जमालिकुमार राजप्रासाद में आया। माता-पिता से अपने मन की बात कही। माता-पिता पुत्र-विरह के आशंकित भय से रो पड़े। पुत्र को बहुत प्रकार से समझाया, पर, सब व्यर्थ । अन्तत: मातापिता सहमत हुए। दीक्षा-समारोह रचा। आशीर्वादात्मक जय-घोषों के साथ सहस्रों नागरिकों ने उसकी वर्धापना की। जमालिकुमार व माता-पिता के विनम्र निवेदन पर महावीर ने उसे भिक्षु-संघ दीक्षित किया। पांच सौ अन्य क्षत्रियकुमार भी उसके साथ दीक्षित हुए। उसकी पत्नी अर्थात् महावीर की पुत्री प्रियदर्शना भी एक हजार अन्य क्षत्रिय महिलाओं के साथ दीक्षित हुई।४ १. दीक्षा के बाद-ऋषभदत्त ने ग्यारह अंगों का सम्यक् अध्ययन किया । छ8, अट्ठम, दशम आदि अनेक विध तप का अनुष्ठान किया और बहुत वर्षों तक आत्मा को भावित करता हुआ साधु-पर्याय में रमण करता रहा । अन्तिम ममय में एक मास की संलेखना और अनशन से मोक्ष-पद प्राप्त किया। २. दीक्षा के बाद-देवानन्दा ने भी ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। नाना तपस्याओं में अपनी आत्मा को भावित करती हुई वह सब कर्मों का क्षय कर मुक्त हुई। -भगवती, श०६, उ० ३३ के आधार से। ३. विशेषावश्यकभाष्य, सटीक, पत्र ६३५। ४. जमालि की दीक्षा भगवती, श० ६, उ० ३३; प्रियदर्शना की दीक्षा त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्रम, पर्व १०, सर्ग ८ के आधार से। जमालि-सम्बन्धी आगे का वर्णन देखें, विरोधी शिष्य, प्रकरण के अन्तर्गत 'जमालि। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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