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________________ इतिहास और परम्परा] भिक्षु-संघ और उसका विस्तार १८३ के प्रति श्रद्धाशील बनाता और भगवान् महावीर के समवशरण में पहुँचाता। प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर ही वह भोजन करता। एक दिन नौ व्यक्तियों को तो वह प्रतिबोध दे चुका था। दसवाँ व्यक्ति स्वर्णकार था। वह प्रतिबुद्ध नहीं हो रहा था। बहुत देर लग गई। प्रतीक्षा करती वेश्या व्यग्र हो उठी। उसने आकर भोजन के लिए कहा। नन्दीसेन ने कहा-"दसवें व्यक्ति को बिना समझाये मैं भोजन कैसे करूँ !" वेश्या झुंझलाकर बोल पड़ी-"ऐसी बात है, तो स्वयं ही दसवें क्यों नहीं बन जाते ?" नन्दीसेन को बात लग गई । वेश्या देखती ही रही । वह वहाँ से महावीर के समवशरण में आ पुनः दीक्षित हुआ।' ऋषभदत्त-देवानन्दा राजगृह में तेरहवाँ वर्षा वास समाप्त कर भगवान् महावीर ने विदेह की ओर प्रस्थान किया । मार्गवर्ती ब्राह्मणकुण्ड ग्राम पधारे। उसके निकटवर्ती बहुशाल चैत्य में ठहरे। इसी ग्राम में शृषभदत्त ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम देवानन्दा था। महावीर के आगमन का संवाद याम में विद्युत की तरह फैल गया। ऋषभदत्त अपनी पत्नी के साथ महावीर को वन्दन करने के लिए चला। जब वह उनके निकट पहुंचा, पांच अभिगमों से युक्त हुआ। उसने सचित्त का त्याग किया, वस्त्रों को व्यवस्थित किया, उत्तरासंग किया और बद्धांजलि होकर मानसिक वृत्तियों को एकान किया। तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणापूर्वक वन्दना की और देशना सुनने के लिए बैठ गया। देवानन्दा ने भी ऋषभदत्त की भाँति पाँच अभिगमनपूर्वक वन्दना की और देशना सुनने के लिए बैठ गई । महावीर की ओर ज्यों-ज्यों वह देखती थी, अत्यन्त रोमांचित होती जा रही थी। उसका वक्ष उभरा जा रहा था । आँखों से हर्ष के आंसू उमड़े जा रहे थे। उसे स्वयं को भी पता न चल रहा था कि यह सब क्या हो रहा है ? अकस्मात् उसकी कंचुकी टूटी और उसके स्तनों से दूध की धारा बह निकली। गणधर गौतम ने इस अभूतपूर्व दृश्य को देखा। उनके मन में सहज जिज्ञासा हुई। वन्दना कर भगवान् महावीर से उन्होंने पूछा-"भन्ते ! देवानन्दा आज इतनी रोमांचित क्यों हुई ? उसके स्तन से दुग्ध-धारा बहने का विशेष निमित्त क्या बना?" भगवान् महावीर ने उत्तर दिया-गौतम ! देवानन्दा मेरी माता है। मैं इसका पुत्र हूँ। पुत्र-स्नेह के कारण ही यह रोमाञ्चित हुई है।" अश्रुतपूर्व इस उदन्त से सभी विस्मित हुए। गणधर गौतम ने अगला प्रश्न किया"अन्ते ! आप तो रानी त्रिशला के अङ्गजात हैं ?' ___भगवान् महावीर ने गर्म परिवर्तन की अपनी सारी घटना सुनाई । तब तक वह घटना सब के लिए अज्ञात ही थी। ऋषमदत्त और देवानन्दा के हर्ष का पारावार नहीं रहा। __भगवान् महावीर ने ऋषभदत्त, देवानन्दा और विशाल परिषद् को धर्मोपदेश दिया। सभी श्रोता सुनकर अत्यन्त हर्षित हुए। ऋषभदत्त खड़ा हुआ। उसने भगवान् से प्रार्थना की ----"भन्ते ! आपके धर्म में मेरी श्रद्धा है। मुझे यह रुचिकर है। यह धर्म भव-भ्रमण का अन्त करने वाला है। अतः मैं इसे स्वीकार करना चाहता हूँ। मैं प्रवजित होकर कृत्स्न कर्मों का १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रम्, पर्व १०, सर्ग ६ के आधार से। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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