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इतिहास और परम्परा ]
भिक्षु सघ और उसका विस्तार
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संसार से पराङ्मुख होकर साधु-चर्या को स्वीकार करना चाहता था । पिता श्रेणिक और माता धारणी के पास आकर उसने करबद्ध कहा- "आप ने चिरकाल तक मेरा लालन-पालन किया है । मैं आपको केवल श्रम देने वाला ही रहा हूँ । किन्तु, मैं आप से एक प्रार्थना करना चाहता हूँ; इस दुःखद जगत् से मैं ऊब गया हूँ । भगवान् महावीर यहाँ पधारे हैं। यदि आप अनुमति दें, तो मैं उनके चरणों में साधु-धर्म स्वीकार कर लूँ ।"
श्रेणिक और धारिणी ने साधु-जीवन की दुष्करता के बारे में मेघकुमार को नाना प्रकार से समझाया, किन्तु, वह अपने विचारों पर दृढ़ रहा । उसने नाना युक्तियों से उत्तर देकर माता-पिता को आश्वस्त कर दिया कि वह भावुकता व आवेश से साधु नहीं बन रहा है।
राजा श्रेणिक ने अन्ततः एक प्रस्ताव रखते हुए कहा - " वत्स ! तू संसार से उद्विग्न है; अतः राज्य, ऐश्वर्य, परिवार आदि तुझे लुभा नहीं सकते । किन्तु, मेरी एक अभिलाषा है । तुझे वह पूर्ण करनी चाहिए। मैं चाहता हूँ, कम-से-कम एक दिन के लिए मगध का यह राज्य भार तू संभाल । यदि तू ऐसा कर सकेगा तो मुझे शान्ति प्राप्त होगी । "
मेघकुमार ने श्रेणिक के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया । समारोहपूर्वक उसका राज्याभिषेक किया गया। सारे मगध में खुशियाँ मनाई गईं । राजा श्रेणिक पूर्णतः तृप्त हो गया । उसने मेघकुमार को वत्सलता की दृष्टि से निहारा और पूछा - " वत्स ! मैं अब तेरे लिए क्या कर सकता हूँ ?" मेघकुमार ने सविनय कहा - ' - "पितृवर ! यदि आप मेरे पर प्रसन्न हैं तो कुत्रिकापण से मुझे रजोहरण, पात्र आदि मंगवा दें। मैं अब साधु बनना चाहता हूँ । श्रेणिक ने तदनुसार सब व्यवस्था की । एक लाख स्वर्ण मुद्रा से रजोहरण मंगाया और एक लाख स्वर्ण मुद्रा से पात्र । राज्याभिषेक महोत्सव की तरह ही मेघकुमार का अभिनिष्क्रमण महोत्सव भी उल्लेखनीय रूप से मनाया गया। महावीर के द्वारा भागवती दीक्षा ग्रहण कर मेघकुमार साधु-चर्या में लीन हो गया ।
नन्दीसेन
नन्दीसेन राजा श्रेणिक का पुत्र था। एक बार महावीर राजगृह आये । राजा और राज-परिवार के अन्य सदस्यों के साथ नन्दीसेन भी महावीर के दर्शन करने तथा प्रवचन सुनने के लिए गया । हजारों मनुष्यों की परिषद् में महावीर का प्रवचन हुआ और प्रश्नोत्तर हुए। प्रवचन से प्रभावित हो, जहाँ सैंकड़ों व्यक्ति सम्यक्त्वी व देशव्रती हुए, वहाँ नन्दीसेन सर्वव्रती (साधु) होने को तत्पर हुआ ।
राज-महलों की मनोहत्य मोग सामग्री को छोड़कर अकिञ्चन निर्ग्रन्थ बनने के राजकुमार के संकल्प का सर्वत्र स्वागत हुआ । किन्तु, सहसा एक आकाशवाणी हुई- "राजकुमार ! अपने निर्णय पर पुनः चिन्तन करो। तुम्हारे भोग्य कर्म अभी अवशिष्ट हैं । वे निकाचित हैं । तुम्हें भोगने ही पड़ेंगे। तुम्हारा संकल्प उत्तम है, पर, उन भोग्य कर्मों की तुम उपेक्षा नहीं कर सकोगे ।'
१. णाया धम्मकहाओ, अ० १ के आधार से ।
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