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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
चन्दनबाला तीन दिन से भूखी थी। उसने विलखते हुए कहा- पिताजी ! कुछ खाने को दें। सेठ तत्काल घर में आया। रसोई को ताला लगा हुआ था। इधर-उधर खोजने पर उसे शूर्प में पड़े उड़द के सूखे बाकुले मिले । सेठ उन्हें लेकर चन्दनबाला के पास आया। आश्वासन के साथ उसने वे बाकूले शप-सहित चन्दनबाला के हाथ में रखे । सेठ ने कहा"बेटी ! एक बार तू इन्हें खा । मैं तेरी शृङ्खलायें तोड़ने का प्रबन्ध करता हूँ।" ।
सेठ वहाँ से चला। चन्दनबाला सिसकती हुई द्वार तक पहुंच गई । पैरों से जकड़ा हुई सिर से मुण्डित, तीन दिन की भूखी चन्दनबाला शूर्प में उड़द के सूखे बाकुले लिए अकेली दुःखमग्न बैठी थी। सहसा विचार आया, यदि इस समय किसी निर्ग्रन्थ का योग मिले, तो मैं यह रुखा-सूखा दान देकर कृतकृत्य हो जाऊँ। उसके भाग्य ने उसे सहारा दिया। अभिग्रहधारी भगवान् महावीर अकस्मात् वहाँ पधारे । उनके अभिग्रह को पांच महीने पच्चीस दिन पूरे हो रहे थे । अपने द्वार पर भावी तीर्थङ्कर महावीर को देखकर चन्दनबाला पुलक उठी। उसका सारा दुःख राख में बदल गया। हर्षातिरेक से उसने प्रार्थना की--"प्रभो ! इस प्रासक अन्न को ग्रहण कर मेरी भावना पूर्ण करें।" महावीर अवधिज्ञानी थे। उन्होंने अपने अभिग्रह की पूर्णता की ओर ध्यान दिया। उसकी पूर्ति में केवल एक बात अवशिष्ट थी। चन्दनबाला की आँखों में आंसू नहीं थे । महावीर वापिस मुड़ गये। चन्दनबाला को अप्रत्याशित दुःख हुआ। वह रो पड़ी। महावीर ने मुड़कर एक बार चन्दनबाला की ओर देखा। उनका अभिग्रह अब पूर्ण हो चुका था । बढ़ते हुए कदम रुके और दूसरे ही क्षण चन्दनबाला की ओर बढ़ चले । झरती आँखों से और हर्षातिरेक से चन्दनबाला ने महावीर को उड़द के सूखे बाकले बहराये। मह वीर ने वहाँ पारणा किया। आकाश में 'अहोदानं अहोदान' की देव-दुन्दुभि बज उठी। पाँ दिव्य प्रकट हए । साढ़े बारह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं की वृष्टि हुई। चन्दनबाला का सौन्दर्य अतिशय निखर उठा। उसकी लोह-शृङ्खला स्वर्ण-आभूषणों में परिवर्तित हो गई। सर्वत्र सतीत्व की यशोगाथा गाई जाने लगी।
शतानीक राजा की पत्नी मृगावती चन्दनबाला की मौसी थी। राजा और रानी ने जब यह उदन्त सुना, चन्दनबाला को राजमहलों में बुला लिया। विवाह करने के लिए आग्रह किया, पर, वह इसके लिए प्रस्तुत नहीं हुई।
केवलज्ञान प्राप्त कर जब महावीर मध्यम पावा पधारे, तब चन्दनबाला उनके समवशरण में दीक्षित हुई। इसी अवसर पर अनेकानेक पुरुष श्रावक बने तथा महिलाएं श्राविकाएं साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध तीर्थ की स्थापना हुई, जिससे कि महावीर तीर्थङ्कर कहलाए ।' मेघकुमार
मेधकुमार राजा श्रेणिक का पुत्र था। आठ कन्याओं के साथ उसका पाणि-ग्रहण किया गया। तीर्थङ्कर महावीर राजगृह आये। राजा श्रेणिक सपरिवार दर्शनार्थ आया। महावीर की प्रेरक देशना सुनकर परिषद् नगर को लौट आई। श्रेणिक भी राज-महलों में लौट आया । मेघकुमार के मन में महावीर के उपदेश ने एक अभिनव चेतना जागृत कर दी। वह
१. आवश्यक चूणि, भाग-१ । .
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