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इतिहास और परम्परा]
भिक्षु-संघ और उसका विस्तार
१७६.
विफल कर दिया। रानी की इस मार्मिक मृत्यु ने रथिक के नेत्र खोल दिये और चन्दनबाला को भी एक जीवन्त शिक्षा मिल गई।
रथिक कौशाम्बी लौट आया चन्दनबाला को उसने एक दासी की भाँति बाजार में बेच दिया। पहले उसे एक वेश्या ने खरीदा और वेश्या से धनावह सेठ ने । चन्दनबाला सेठ के घर एक दासी की भाँति रहने लगी। उसके व्यवहार में राज-कन्या का कोई प्रतिबिम्ब नहीं था। उसका व्यवहार सब के साथ चन्दन की तरह अतिशय शीतल था; अतः तब से उसका चन्दना नाम अति विश्रुत हो गया।
चन्दनबाला प्रत्येक कार्य को अपनी चातुरी से विशेष आकर्षक बना देती। वह अतिशय श्रमशीला थी; अतः सबको ही भा गई। उसकी लोकप्रियता पर सभी दास-दासी मुग्ध थे। कार्य की प्रचुरता व्यक्तित्व की शालीनता को आवृत्त नहीं कर सकती। चन्दनबाला युवती हुई । उसके प्रत्येक अवयव में सौन्दर्य निखर उठा । सेठानी मूला को उसके लावण्य से डाह होने लगी। सेठ कहीं इसे अपनी सहमिणी न बना ले; यह उसके तन में भय था। चन्दनबाला के प्रत्येक कार्य को वह प्रतिक्षण घूर-चूर कर देखती रहती थी। चन्दनबाला ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। वह सेठ और सेठानी को माता-पिता ही मानती और उनके साथ एक दासी की भाँति रहती। उसने कभी यह व्यक्त भी नहीं होने दिया कि वह एक राजकुमारी है।
सेठ एक दिन किसी गाँव से यात्रा कर लौटा । दोपहर का समय हो चुका था। पदयात्रा के श्रम से व भूख-प्यास से वह अत्यन्त क्लान्त हो गया था। घर पहुँचते ही वह पैर धोने के लिए बैठा । चन्दनबाला पानी लेकर आई। सेठ पैर धोने लगा और वह धुलाने लगी। चन्दनबाला के केश सहसा भूमि पर बिखर पड़े। कीचड़ में वे सन न जाये, इस उद्देश्य से सेठ ने उन्हें उठाया और उसकी पीठ पर रख दिया। झरोखे में बैठी मूला की वक्र दृष्टि उस समय चन्दनबाला और सेठ पर पड़ी। उसे अपनी आशंका सत्य प्रमाणित होती हुई दिखाई दी। उसके शरीर में आग-सी लग गई। उस क्षण से ही उसने चन्दनबाला के विरुद्ध षड्यन्त्र की योजना आरम्भ कर दी।
सेठ आये दिन अपने व्यवसाय के काम से देहातों में जाता रहता था। एक दिन जब वह देहात गया, पीछे से मूला ने चन्दनबाला को पकड़ा और सिर मुंडन कर, पैरों को बेड़ी से जकड़ कर उसे भौंहरे में डाल दिया। घर बन्द कर स्वयं पीहर चली गई। सेठ को तीन दिन लग गये। जब वह लौटा तो उसे घर बन्द मिला । उसे आश्चर्य हुआ और खिन्नता भी हुई।
बाहर का द्वार खोलकर सेठ घर में गया। सभी कमरों के दरवाजों पर ताले लगे हुए थे। एक-एक कर सेठ ने सभी कमरों को संभाला। घूमता हुआ वह नीचे भौंहरे के पास भी जा पहुँचा। वहाँ उसे किसी के सिसकने की आवाज सुनाई दी। उसने करुण स्वर में पूछा"कौन चन्दना?" घर्घराए स्वर से उत्तर मिला-"हाँ, पिताजी ! मैं ही हूँ।" सेठ के दुःख का पार न रहा । उसने चन्दनबाला को जैसे-तैसे बाहर निकाला। रुंधते हुए गले से पूछा"बेटी ! तेरे साथ यह बर्ताव किसने किया ?" चन्दनबाला फिर भी शान्त थी। उसने अपने धैर्य को नहीं खोया । बोली-"पिताजी ! मेरे ही अशुभ कर्मों का यह परिपाक है।"
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