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इतिहास और परम्परा ]
क्या सब कुछ अतिशयोक्ति ?
बौद्ध विद्वान् धर्मानन्द कोसम्बी बौद्ध भिक्षुओं की बढ़ी चढ़ी इन संख्याओं के बारे में संदिग्धता उत्पन्न करते हैं । वे कहते हैं :
"बुद्ध को वाराणसी में साठ भिक्षु मिले ।
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भिक्षु संघ और उसका विस्तार
... राजगृह तक भगवान् बुद्ध को जो भिक्षु मिले, उनकी संख्या क्या इन पन्द्रह भिक्षुओं से अधिक थी ? बुद्ध को वाराणसी में साठ भिक्षु मिले, उरुवेला जाते समय रास्ते में तीस और उरुवेला में एक हजार' - इस प्रकार कुल मिलाकर १०९३ भिक्षुओं के संघ के साथ भगवान् ने राजगृह में प्रवेश किया। वहां सारिपुत्त एवं मोग्गल्लान के साथ संजय परिव्राजक के ढाई सौ शिष्य आकर बौद्ध संघ में आकर मिल गए ; यानी उस समय भिक्षु संघ की संख्या १३४५ हो गई थी । परन्तु इतना बड़ा भिक्षु संघ बुद्ध के पास होने का उल्लेख सुत्तपिटक में कहीं नहीं मिलता। सामञ्ञफलसुत्त में कहा गया है कि बुद्ध भगवान् परिनिर्वाण से एक-दो वर्ष पहले जब राजगृह गये तब उनके साथ १२५० भिक्षु थे, परन्तु tafter के दूसरे आठ सुंत्तों में भिक्षु संघ की संख्या ५०० दी गई है और ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान् की अन्तिम यात्रा में भी उनके साथ ५०० भिक्षु ही थे । भगवान् के परिनिर्वाण के बाद राजगृह में भिक्षुओं की जो पहली परिषद् हुई, उसमें भी ५०० भिक्षु ही थे । अतः यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भगवान् के परिनिर्वाण तक भिक्षु संघ की संख्या ५०० से अधिक नहीं हुई थी ।
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"बुद्ध भगवान् परिनिर्वाण के बाद कदाचित् इस संख्या को बढ़ा-चढ़ा कर बताने का कार्य शुरू हुआ । ललित विस्तर के शुरू में ही कहा गया है कि श्रावस्ती में भगवान् के साथ बारह हजार भिक्षु एवं बत्तीस हजार बोधिसत्त्व थे । इस प्रकार अपने सम्प्रदाय का महत्त्व बढ़ाने के लिए उस समय के भिक्षुओं ने पूर्वकालीन भिक्षुओं की संख्या बढ़ानी शुरू की और महायान पंथ के ग्रन्थकारों ने तो उसमें चाहे जितने बोधिसत्त्वों की संख्या बढ़ा दी। बौद्ध धर्म की अवनति का यही प्रमुख कारण था। अपने धर्म एवं संघ का महत्व बढ़ाने के लिए बौद्ध भिक्षुओं ने बे-सिर-पैर की दन्त कथाएं गढ़ना शुरू कर दिया और ब्राह्मणों ने उनसे भी अधिक अद्भुत कथा गढ़कर भिक्षुओं को पूरी तरह हरा दिया । "3
श्री कोसम्बी ने अपनी समीक्षा में उक्त प्रकार की भिक्षु संख्याओं को नितान्त अतिशयोक्ति पूर्ण बताया है; पर, लगता है, समीक्षा करते हुए वे स्वयं को भी अतिशयोक्ति से बचा नहीं सके । जैन और बौद्ध अवान्तर ग्रन्थों में अतिशयोक्तियाँ की गई हैं, पर, दीक्षासम्बन्धी आँकड़ों को नितान्त काल्पनिक ही मान लेना यथार्थ नहीं लगता । मनुष्य सदा ही वातावरण में जीता है और प्रवाह में चलता है । महावीर और बुद्ध का युग आध्यात्मिक उत्कर्ष का एक सर्वोच्च काल था । उस युग में आध्यात्मिकता की अन्तिम पहुंच थी - गृहमुक्ति । श्रद्धा का युग था । राजा, राजकुमार और बड़े-बड़े घनिक उस रास्ते पर अगुआ होकर चल
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१. पंचवर्गीय भिक्षु, यश और उसके चार मित्र, तीन काश्यप बन्धु और संजय के शिष्य सारिपुत्त तथा मौद्गल्लान ।
२. यहाँ 'एक हजार तीन' होना चाहिए; देखें, भगवान् बुद्ध, पृ० १५१ ।
३. भगवान् बुद्ध, पृ० १५३-५४ ।
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