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भिक्ष-संघ और उसका विस्तार
भगवान् महावीर के धर्म-संघ में १४००० साधु और ३६००० साध्वियां बताई गई हैं। भगवान बुद्ध के धर्म-संघ में भिक्षु और भिक्षुणियां कितनी थीं, यह निश्चित और एकरूप बता पाना कठिन है। बोधि-लाभ के कुछ समय पश्चात ही जब वे सर्वप्रथम राजगह में आये १०६३ भिक्षु उनके साथ थे, ऐसा उल्लेख मिलता है। सारिपुत्त और मोग्ग्ल्लान २५० परिव्राजकों के परिवार से बौद्ध संघ में और सम्मिलित हो गये । इस प्रकार बुद्ध के राजगृह प्रथम आगमन के समय कुल संख्या १३४५. हो गई। कपिलवस्तु के प्रथम गमन में २०००० भिक्षु उनके साथ थे। ललित-विस्तर के अनुसार श्रावस्ती-गमन के समय १२००० भिक्षु और ३२००० बोधिसत्त्व उनके साथ थे।
___संघ-विस्तार का कार्य कैवल्य और बोधि-प्राप्ति के साथ-साथ ही प्रारम्भ हो गया था। सहस्रों-सहस्रों के थोक (समूह) विविध घटना-प्रसंगों के साथ दीक्षित हुए थे। दीक्षित होने वालों में बड़ा भाग वैदिक पण्डितों, परिव्राजकों व क्षत्रिय राजकुमारों का होता था। दोनों ही परम्पराओं के ये दीक्षा-प्रसंग बहुत ही अद्भुत और प्रेरक हैं।
कहीं-कहीं तो इन घटनाओं में विलक्षण समानताएं भी हैं। महावीर इन्द्रभूति आदि ग्यारह पण्डितों व चार हजार चार-सौ उनके ब्राह्मण शिष्यों को दीक्षित करते हैं । बुद्ध उरुवेल
आदि तीन जटिल नायकों को उनके एक हजार शिष्यों सहित दीक्षित करते हैं। इन्द्रभूति एक ही घटना-प्रसंग से कोडिन्न, दिन्न, सेवाल; इन तीन तापस-नायकों को उनके पन्द्रह सौ तापस शिष्यों के साथ दीक्षित् करते हैं।
__ महावीर अपनी जन्म-भूमि में आकर पांच सौ व्यक्तियों के परिवार से अपने जामाता जमालि को व पन्द्रह सौ के परिवार से अपनी पुत्री प्रियदर्शना को दीक्षित करते हैं। बुद्ध कपिलवस्तु-आगमन प्रसंग में दस सहस्र नागरिकों व अपने पुत्र राहुल तथा महा प्रजापति गौतमी के पुत्र नन्द को दीक्षित करते हैं ।
१. उववाई, सूत्र १० ; कप्प सुत्त, सू० १३४-३५ । २. भगवान बद्ध, प०१५४ ।
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