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________________ इतिहास और परम्परा कैवल्य और बोधि तीसरा अवधिज्ञान है । अवधिज्ञानी (विमंग-ज्ञानी) अपने विषय पर दत्तचित्त होकर ही ज्ञेय का ज्ञान करता है । बुद्ध का ज्ञान भी जैन परिभाषा में अवधिज्ञान (विभंग-ज्ञान) जैसा ही प्रतीत होता है। इस तथ्य की पुष्टि इससे भी होती है कि बौद्ध शास्त्र सर्व-काल और सर्वदेश में अवस्थित केवलज्ञान के प्रति अनास्था और असंभवता व्यक्त करने के साथ-साथ उपहास भी व्यक्त करते हैं। सन्दक सुत्त में कहा गया है-'यहाँ एक शास्ता सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अशेष ज्ञान-दर्शन-सम्पन्न होने का दावा करता है-चलते, खड़े रहते, सोते, जागते, सदासर्वदा मुझे ज्ञान-दर्शन प्रत्युपस्थित रहता है । तो भी वह सूने घर में जाता है और वहाँ भिक्षा पाता, कुक्कुर भी काट खाता है, चण्ड हाथी से भी उसका सामना हो जाता है, चण्ड घोड़े और चण्ड बैल से भी सामना हो जाता है। सर्वज्ञ होने पर भी स्त्री-पुरुषों के नाम-गोत्र पूछता है, ग्राम-निगम का नाम और मार्ग पूछता है। आप सर्वज्ञ होकर यह क्या जनता द्वारा प्रश्न किये जाने पर, वह कहता है-सूने घर में जाना भवितव्यता थी, इसलिए । भिक्षा न मिलना भवितव्यता थी, इसलिए न मिली। कुक्कुर का काटना, हाथी से मिलना, घोड़े और बैल से मिलना भी भवितव्यता थी; अतः वैसा हुआ।"२ उक्त आक्षेपों की मीमांसा में जाना यहाँ विषयानुगत नहीं होगा । यहाँ तो केवल इतना ही अभिप्रेत है कि कैवल्य और बोधि एक परिभाषा में नहीं समा पाते । जैनों की सर्वज्ञता बौद्धों के लिए एक प्रश्न चिह्न ही रही है। सर्वज्ञता का प्रश्न वर्तमान युग में मूलतः ही विवादास्पद बन रहा है। नवीन धारणाओं में महावीर की सर्वज्ञता उप्पन्नेह वा, विगमेह वा. धुवेहवा' की उपलब्धि और बुद्ध की बोधि यत् सत् तत् क्षणिक के विवेक-लाभ में समाहित हो जाती है। १. अवधिज्ञान ही पात्र-भेद के कारण विभंग-ज्ञान कहा जाता है। २. मज्झिम निकाय, मज्झिम पण्णासक, परिब्बाजक वग्ग, सन्दक सुत्त। ३. भगवती, शतक ५, उद्देशक ६, सूत्र २२५ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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