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________________ १७२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ चारों ओर से प्रकाशित हो उठे। चौरासी हजार योजन गहरे महासमुद्र का पानी मीठा हो गया। नदियों का बहाव रुक गया। जन्मान्ध देखने लगे, जन्म से बहरे सुनने लगे और जन्म के पंगु चलने लगे। बन्दिजनों की हथकड़ियां और बेड़ियां टूट कर गिर पड़ी। वे बन्धन-मुक्त हो गये। उस समय अनेक विस्मय-कारक घटनायें घटी।' 'कैवल्य' की अपेक्षा 'बोधि' का वर्णन अधिक आलंकारिक है। कैवल्य के सम्बन्ध स देवों के आगमन की विशेष चर्चा है और बोधि के सम्बन्ध से मनुष्य-लोक की । अलौकिक और विस्मय-कारक घटनाओं के घटित होने का उल्लेख दोनों में समान रूप से है। अवलोकन सर्वज्ञता के सम्बन्ध में बौद्धों की मान्यता है, बुद्ध जो जानना चाहते हैं, वह जान सकते हैं; जबकि जैनों की धारणा है, जो ज्ञेय था, वह सब महावीर ने अपने कैवल्य-प्राप्ति के प्रथम क्षण में ही जान लिया । बोधि-प्राप्त बुद्ध अपनी विवक्षा के प्रारम्भ में सोचते हैं"मैं सर्वप्रथम इस धर्म की देशना किसे करूँ; इस धर्म को शीघ्र ही कौन ग्रहण कर सकेगा?" तत्काल ही उनके मन में आया, "आलार-कालाम मेधावी, चतुर व चिरकाल से अल्प मलिन चित्त है। क्यों न मैं उसे ही सर्वप्रथम धर्म की देशना दूं ? वह इसे बहुत शीघ्र ग्रहण कर लेगा।" प्रच्छन्नरूप से देवताओं ने कहा- "भन्ते ! आलार-कालाम तो एक सप्ताह पूर्व ही मर चुका है।" बुद्ध को भी उस समय ज्ञान-दर्शन हुआ और उन्होंने इस घटना को जाना। साथ ही उन्होंने सोचा, "आलार-कालाम महाआजानीय था। यदि वह इस धर्म को सुनता, शीघ्र ही ग्रहण कर लेता।" फिर उन्होंने चिन्तन किया-"उद्दकराम पुत्र चतुर, मेधावी व चिरकाल से अल्प मलिन चित्त है। क्यों न मैं पहले उसे ही धर्मोपदेश करूँ? वह इस धर्म को शीघ्र ही ग्रहण कर लेगा।" देवताओं ने गुप्त रूप से उन्हें सूचित किया-"भन्ते ! वह तो रात को ही काल-धर्म को प्राप्त हो चुका है।" बुद्ध को भी उस समय ज्ञान-दर्शन हुआ। चिन्तन-लीन होकर बुद्ध ने फिर सोचा-"पंचवर्गीय भिक्षु मेरे बहुत काम आये है। साधना-काल में उन्होंने मेरी बहुत सेवा की थी। क्यों न मैं सर्वप्रथम उन्हें ही धर्मोपदेश करूं।" आगे उन्होंने सोचा- "इस समय वे कहाँ हैं ?" उन्होंने अमानुष विशुद्ध दिव्य नेत्रों से देखा -"वे तो इस समय वाराणसी के ऋषिपत्तन मृग-दाव में विहार कर रहे हैं।"२ बोधि-लाभ के पश्चात् बुद्ध ऐसे लोगों को धर्मोपदेश देने का सोचते हैं, जो दिवंगत हो चुके हैं। जब उन्हें बताया जाता है, तब वे अपने 'ज्ञान-दर्शन' से भी वैसा जानते हैं । ज्ञान और दर्शन शब्द का प्रयोग दोनों परम्पराओं में युगपत् चलता है। महावीर केवलज्ञानकेवलदर्शन प्राप्त करते हैं। बुद्ध अपने ज्ञान-दर्शन से आलार-कालाम व उद्दकराम-पुत्र की मृत्यु को जानते हैं। जैन परम्परा में पाँच ज्ञान और चार दर्शन माने गए हैं। पाँच ज्ञान में - १. जातकट्ठथा, निदान । २. विनय पिटक, महावग्ग, महाखन्धक के आधार से। ३. ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव, केवल । ४. दर्शन-चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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