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इतिहास और परम्परा] परिषह और तितिक्षा रहता है । इस प्रकार वह बुद्ध की शीत-ताप, दंश, मच्छर, वात, धूप, सरीसृप आदि से रक्षा करता है।
यह उपसर्ग तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के कमठ उपसर्ग जैसा है। छद्मस्थ अवस्था में पार्श्वनाथ एक दिन वट वृक्ष की छाया में कूप के समीप ध्यानस्थ खड़े थे। पूर्व भव के विरोधी मेघमाली देव ने भयंकर कड़क और बिजली के साथ मूसलधार मेघ बरसाना प्रारम्भ किया। नदी-नाले बह चले। प्रलय का-सा दृश्य उत्पन्न हो गया। तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के गले तक पानी भर आया। धरणेन्द्र-पद्मावती देव-युगल ने उस समय उन्हें स्वविकुर्वित कमल-नाभि पर खड़ा किया और उनके मस्तक पर विकुर्वित नागराज फन तान कर खड़ा रहा। इस प्रकार तीन दिन तक वे देव द्वारा सुरक्षित रहे।
१. विनय पिटक, महावग्ग, महाखन्धक। २. विस्तार के लिए देखें-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रम् ।
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