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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ बुद्ध ने तत्काल चीवर में से दाहिने हाथ को निकाला । महापृथ्वी को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा – “वेस्सन्तर जन्म में मेरे द्वारा सात सप्ताह तक दिए गये दान की क्या तृ साक्षिणी है ?" १६८ ( बुद्ध ने महापृथ्वी से प्रश्न किया और उसकी ओर हाथ लटकाया । ) महापृथ्वी ने तत्काल उत्तर दिया- "मैं तेरी उस समय की साक्षिणी हूँ ।" और मार-सेना को तितर-बितर करते हुए उसने शतशः, सहस्रशः और लक्षशः महानाद किया । मार पराभूत हुआ । उसने बुद्ध के कथन को स्वीकार करते हुए कहा- -"सिद्धार्थ ! तूने महादान दिया है, उत्तम दान दिया है ।" ज्योंही मार ने वेस्सन्तर जन्म के दान पर विचार किया, गिरिमेखल हाथी ने दोनों घुटने टेक दिये। उसी समय मार सेना दिशाओं विदिशाओं में भाग निकली। एक मार्ग से दो नहीं गये । सिर के आभूषण व वस्त्रादिक छोड़, जिस ओर अवकाश मिला, उस ओर ही भाग निकले । देव - गण ने बुद्ध की विजय और मार की पराजय को देखा । वे बहुत हर्षित हुए । बुद्ध के समीप आये और उनकी पूजा की। अवलोकन संगम और मार के कुछ परिषद् तो नितान्त एक रूप ही हैं; फिर भी कुछ मौलिक अन्तर भी है । संगम द्वारा होने वाले परिषहों के आघात का परिणाम महावीर के शरीर पर होता है; किन्तु, वे इतने स्थिरकाय थे कि उनसे विचलित नहीं हुए । मार देव पुत्र द्वारा होने वाले आक्रमण जब बुद्ध के समीप पहुँचते हैं तो बुद्ध दश पारमिताओं का स्मरण करते हैं और वे (आक्रमण) पुष्प आदि के रूप में बदल जाते हैं तथा वे उनके लिए कष्टकारक नहीं होते । महावीर का संगम के साथ कोई वार्तालाप नहीं होता है । बुद्ध और मार देव पुत्र एक दूसरे को चुनौतियाँ देते हैं और दोनों में वाद-विवाद भी होता है । महावीर के समक्ष संगम और बुद्ध के समक्ष मार देव पुत्र, अन्त में, दोनों ही पराभूत होते हैं । महावीर को ये उपसर्ग छद्मस्थ काल के ग्यारहवें वर्ष में होते हैं । इन्द्र द्वारा की गई उनकी ध्यान दृढ़ता की प्रशंसा इसका निमित्त बनती है। संगम को मिध्यादृष्टि देव माना गया है। बुद्ध को मार देव-पुत्र-कृत ये उपसर्ग अबोधि दशा के अन्तिम वर्ष में होते हैं; जब कि बुद्ध सुजाता की खीर खाकर सम्यक् सम्बोधि प्राप्त किये बिना आसन को न छोड़ने का प्रण करते हैं । उपसर्गों के अनन्तर ही बुद्ध बोधि-लाभ कर लेते हैं और फिर वे स्थानान्तर से सात सप्ताह तक समाधि लगाते हुए विमुक्ति का आनन्द लेते हैं । दूसरे सप्ताह वे अजपाल बर्गद के नीचे और तीसरे सप्ताह मुचलिन्द वृक्ष की छाया में समाधि लेते हैं । उस सप्ताह अकाल मेघ का प्रकोप होता है । शरीर को चीर कर निकलने वाली ठण्डी हवाएँ चलती हैं । उस समय मुचलिन्द नागराज आता है और बुद्ध के शरीर को सात बार लपेट कर उनके मस्तक पर फन तानकर खड़ा १. जातकट्ठकथा, निदान | २. देखें, आवश्यक निर्युक्ति, मलयगिरिवृत्ति, गा० ४६८ से ५१७ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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